Lok Sabha Elections 2024: भाजपा नहीं, हिंदुओं की हार!

कहने को तो एक बार फिर नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं। लेकिन अब बातों में वो दम नहीं दिखता। अब बातों में चीन और पाकिस्तान की ललकार में पहले जैसी ताकत नहीं दिखती।

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  • महेश सिंह

Lok Sabha Elections 2024: आम चुनाव (General Elections) के बाद देश में क्या-क्या बदला? मोटे तौर पर देखें तो चुनाव के बाद ज्यादा कुछ नहीं बदला है। पहले भी देश में एनडीए की सरकार (NDA government) थी, अब भी है। लेकिन पहले भाजपा (BJP) बहुमत में थी और वह एनडीए की अन्य सहयोगी पार्टियों के बिना भी मजबूती से टिकी रह सकती थी, लेकिन अब उसे सरकार चलाने के लिए सहयोगी पार्टियों के सहारे की सख्त जरुरत है।

कहने को तो एक बार फिर नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं। लेकिन अब बातों में वो दम नहीं दिखता। अब बातों में चीन और पाकिस्तान की ललकार में पहले जैसी ताकत नहीं दिखती।

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हिंदुत्व का बड़ा नुकसान
आम चुनाव में मिले जनादेश के बाद बहुत कुछ बदल गया है। यह बदलाव देश का, हिंदुत्व का बड़ा नुकसान है। अब सरकार का कोई मंत्री पीओके की बात नहीं करता, अब कोई सामान आचार संहिता यानी यूसीसी की बात नहीं करता, अब सर्जिकल स्ट्राइक की भी बात नहीं हो रही और सबसे बड़ी बात अब हिंदू राष्ट्र की बात भी कोई नहीं करता। ये सब अब शायद ही संभव है, क्योंकि अब देश में मजबूत नहीं, मजबूर सरकार है। मोदी नहीं, मिली-जुली पार्टियों की सरकार है।

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हिंदुत्व का बड़ा नुकसान
आम चुनाव में मिले जनादेश के बाद बहुत कुछ बदल गया है। यह बदलाव देश का, हिंदुत्व का बड़ा नुकसान है। अब सरकार का कोई मंत्री पीओके की बात नहीं करता, अब कोई सामान आचार संहिता यानी यूसीसी की बात नहीं करता, अब सर्जिकल स्ट्राइक की भी बात नहीं हो रही और सबसे बड़ी बात अब हिंदू राष्ट्र की बात भी कोई नहीं करता। ये सब अब शायद ही संभव है, क्योंकि अब देश में मजबूत नहीं, मजबूर सरकार है। मोदी नहीं, मिली-जुली पार्टियों की सरकार है।

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बड़ा निर्णय लेना मुश्किल
अब केंद्र सरकार को कोई भी बड़ा निर्णय लेने से पहले सौ बार सोचना होगा। अब उसे सोचना होगा कि उसके निर्णय का असर सरकार की सेहत पर पड़ेगा या नहीं। कहीं उसके निर्णय से एनडीए की सहयोगी पार्टियां या पार्टी नाराज तो नहीं हो जाएगी। उसे अब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और चंद्राबाबू नायडू का ख्याल रखना होगा। क्या आपको लगता है कि अगर इससे पहले भी ऐसी ही सरकार होती तो राम मंदिर बन पाता, क्या जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटा होता, क्या तीन तलाक के खिलाफ कानून बना होता? क्या सीएए और एनआरसी जैसे कानून बन पाते? बिलकुल नहीं। इतने बड़े निर्णय इसलिए आसानी से लिए गए, क्योंकि तब भाजपा के पास मजबूत जनादेश था। तब उसे कोई भी निर्णय लेने से पहले सहयोगी पार्टियों की खुशी या नाराजगी की परवाह नहीं थी।

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अब पीओके लेना आसान नहीं
आम चुनाव से पहले न जाने कितनी बार केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री एस जयशंकर सहित भाजपा के अन्य मंत्री-नेताओं ने पीओके लेने की बात कही थी। ऐसा लगने लगा था कि बस अब पीओके भारत में आने ही आने ही वाला है। ये कोई मुश्किल काम नहीं है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने तो यहां तक कहा था कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद हटाए जाने से पहले भी लोगों को यही लगता था कि यह असंभव है। पीओके लेना भी असंभव भले ही लग रहा हो, लेकिन वह बिलकुल संभव है। उनके साथ ही अमित शाह ने कई बार दहाड़कर कहा था कि पीओके हमारा है और हम लेकर रहेंगे। इसी तरह राजनाथ सिंह ने पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में एक रैली को संबोधित करते हुए कहा था कि चिंता मत करो। पीओके हमारा था, है और हमारा रहेगा। लेकिन अब कोई मंत्री-नेता यह बात नहीं करता।

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सर्जिकल स्ट्राइक करना नहीं आसान
आम चुनाव के परिणाम से पहले भारत की ताकत और मनोबल का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पुलवामा आतंकी हमले के बाद मोदी सरकार ने उसका जवाब सर्जिकल स्ट्राइक करके दिया था। 2019 में सरकार और सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक कर पाकिस्तान स्थित आतंकी ठिकानों को तबाह करने का दावा किया था। पीएम मोदी के साथ ही सरकार के अन्य मंत्री नेता भी ये कहा करते थे, ये मोदी की सरकार है, घर में घुसकर मारती है। लेकिन अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं।

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जम्मू में बढ़े आतंकी हमले
वर्तमान में आतंकियों ने कश्मीर को छोड़कर जम्मू को अपना निशाना बनाया है। दो महीने में 15 आतंकी हमले में हमारी सेना के करीब एक दर्जन अधिकारी और जवान हुतात्मा हो चुके हैं, लेकिन अब सर्जिकल स्ट्राइक करने की कोई बात नहीं करता।

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यूसीसी लागू करना भी मुश्किल
आम चुनाव से पहले देश में यूसीसी की बात जोर-शोर से की जाा रही थी। देश में समान आचार संहिता की जरुरत दशकों से महसूस की जाती रही है। सर्वोच्च न्यायालय कई बार सरकार को इसे लागू करने की जरुरत बता चुका है। भारत में अभी शादी, तलाक, उत्तराधिकार और गोद लेने के मामलों में विभिन्न समुदायों में उनके धर्म, आस्था और विश्वास के आधार पर अलग-अलग क़ानून हैं। यूसीसी आने के बाद भारत में किसी धर्म, लिंग और लैंगिक झुकाव की परवाह किए बिना सब पर इकलौता कानून लागू होगा। प्रधानमंत्री ने देश में समान नागरिक संहिता की वकालत करते हुए कहा था कि ‘एक ही परिवार में दो लोगों के अलग-अलग नियम नहीं हो सकते। ऐसी दोहरी व्यवस्था से घर कैसे चल पाएगा?’ लेकिन अब वो बात भी वहीं छूट गई लगती है।

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परिवार नियंत्रण कानून का क्या होगा?
इनके साथ ही अब देश में परिवार नियंत्रण कानून भी लाना असंभव जैसा है। इस कानून के लागू नहीं होने के कारण देश में जनसंख्या संतुलन तेजी से बिगड़ रहा है। मुसलमान ज्यादा बच्चे पैदा कर रहे हैं, वहीं हिंदू अपने बच्चों के भविष्य की चिंता से परेशान हैं। वे एक या दो बच्चे पैदा कर उनके करियर बनाने में लगे है। लेकिन अधिकांश मुसलमानों को अपने बच्चों के करियर की ज्यादा चिंता नहीं है। वे उन्हें पैदा कर देश में अपनी आबादी बढ़ाकर मुस्लिम राष्ट्र बनाने के एजेंडे पर काम कर रहे हैं।

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पीढ़ियों को भुगतनी होगी सजा
मोदी और मोदी सरकार का कमजोर होना वास्तव में हिंदुओं का बड़ा नुकसान है। ऐसा नुकसान, जिसका खमियाजा उसे पीढ़ियों तक चकुाना पड़ सकता है। हिंदुओं को ये बात समझ लेनी चाहिए, कि भाजपा को छोड़कर उसके हितों की रक्षा करने वाली कोई पार्टी है। मोदी और योगी को ताकतवर रहना उसके लिए जरुरी है। अन्य पार्टियां धर्मनिरपेक्षता के बहाने मुसलमानों के हितों की समर्थक हैं। इस बार की गलती हिंदुओं को आगे नहीं करना चाहिए वरना उसके पाप की सजा उसकी पीढ़ियों को भुगतनी पड़ेगी।

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