श्रीलंका में तमिलों के साथ दुय्यम व्यवहार वर्षों से चलता रहा है। ऐसे पीड़ितों को भारतीय नागरिकता मिलने का मार्ग अब खुल गया है। मद्रास उच्च न्यायालय ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए आदेश दिया है कि, वर्ष 2019 में लागू किये गए संशोधित नागरिकता कानून 2019 (सीएए) के अंतर्गत श्रीलंका में जातीय संघर्ष से पीड़ित तमिल समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता दी जा सकती है।
ऐसा है प्रकरण
एस.अबिरामी नामक एक 29 वर्षीय युवती ने मद्रास उच्च न्यायालय में भारतीय नागरिकता के लिए आदेश देने की याचिका की थी। अबिरामी के माता-पिता श्रीलंकाई तमिल हैं। उनके देश में जातीय संघर्ष बढ़ने के बाद परिवार ने तमिलनाडु में शरण ली है। इस बीच त्रिची के नर्सिंग होम में 14 दिसंबर, 1993 को अबिरामी का जन्म हुआ। इसके बाद अबिरामी ने भारत में ही शिक्षा ग्रहण की और अब वह 29 वर्ष की हो गई है। परंतु, नागरिकता प्राप्ति के परिवार के प्रयत्न सफल नहीं हो पाए हैं, जिसके बाद अबिरामी ने मद्रास उच्च न्यायालय में याचिका दायर की जिसमें दो प्रमुख मांग की गई है…
- उच्च न्यायालय, जिलाधिकारी को आदेश दें कि नागरिकता संबंधित उनकी याचिका को केंद्र सरकार के संबंधित मंत्रालय के पास भेजा जाए।
- केंद्र सरकार को आदेश दें कि नागरिकत आवेदन प्राप्ति के छह सप्ताह में निर्णय दे।
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न्यायालय का आदेश
इस प्रकरण में न्यायालय की एकल पीठ ने यह देखा कि अबिरामी प्रवासी माता-पिता की संतान है। जिसका जन्म भारत में हुआ है। वह कभी भी श्रीलंका में नहीं रही है, ऐसी स्थिति में यदि अबिरामी की नागरिकता संबंधी मांग को पूरा नहीं किया जाता तो, वह उसे किसी भी देश की नागरिकता से वंचित कर देगी।
न्यायालय ने सहायक सॉलिसिटर जनरल और अतिरिक्त सरकारी वकील को आदेश दिया कि वे अबिरामी के याचिका को केंद्र सरकार के पास भेजें। इस प्रकरण में केंद्र सरकार को 16 सप्ताह में निर्णय देना होगा।
न्यायालय ने अपने आदेश में इसे कहा है कि, यद्यपि संशोधित नागरिकता कानून 2019 में श्रीलंका से भारत आए हिंदू शरणार्थियों का समावेश नहीं है, इसके बाद भी श्रीलंका में जातीय संघर्ष के कारण भारत में शरण लिये तमिल हिंदुओं को भी इसका कानून के अंतर्गत अवसर दिया जाएगा।
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