लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Elections 2024) की घोषणा हो चुकी है। आम चुनाव सात चरणों में होने हैं, पहला चरण 19 अप्रैल को है। आखिरी चरण 1 जून को है। चुनाव नतीजे 4 जून 2024 को आएंगे। चुनाव की घोषणा होने के बाद से ही सत्ता पक्ष (Ruling Party) और विपक्ष (Opposition) दोनों ही प्रचार में जुट गए हैं। इस बार का लोकसभा चुनाव उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के लिए खास माना जा रहा है, क्योंकि यह इस प्रदेश में लोकसभा चुनाव माफियाओं (Mafia) के बिना होने जा रहा है। एक समय था, जब यूपी में बिना बाहुबलियों के चुनाव नहीं होते थे। विधानसभा हो या लोकसभा चुनाव, हर चुनाव में उनका समान प्रभाव था। उनके खिलाफ चुनाव लड़ने की हिम्मत किसी में नहीं थी। 2017 से यूपी में माफियाओं को खत्म करने की रणनीति के चलते उत्तर प्रदेश में विकास की लहर शुरू हुई। यूपी लोकसभा चुनाव (UP Lok Sabha Elections) में अब बदलाव देखने को मिल रहा है। ज्यादातर बाहुबली या तो जेल में हैं या फिर एनकाउंटर में मार गिराए गए हैं या फिर स्वर्गवासी हो चुके हैं।
माफिया मुक्त पहला चुनाव
उत्तर प्रदेश में चाहे हरिशंकर तिवारी की बात हो या मुख्तार अंसारी की। कोई भी चुनाव उनके प्रभाव से अछूता नहीं रहा है, लेकिन अब जब 2024 का लोकसभा चुनाव होने जा रहा है तो उत्तर प्रदेश की राजनीति के इतिहास में शायद यह पहला मौका है, जब कोई भी बाहुबली चुनाव लड़ने लायक नहीं बचा है। उदाहरण के तौर पर पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के चिल्लूपार विधानसभा ऐसी जगह है, जिसे माफिया बनाने की फैक्ट्री कहा जा सकता है। वहां के सबसे बड़े नेता और पूर्वी यूपी के सबसे बड़े माफियाओं में से एक हरिशंकर तिवारी का निधन हो गया है।
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2019 से बदल गया है चुनावी समीकरण
राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार, उत्तर प्रदेश का चुनाव कभी भी बाहुबलियों के बिना नहीं लड़ा गया। यह पहला लोकसभा चुनाव है, जिसमें नामी माफिया या तो जेल में हैं या फिर ऊपर की टिकट कटवाकर चले गये हैं। अगर बात करें प्रयागराज, भदोही, जौनपुर या प्रदेश में कहीं की तो समय के साथ ये सब खत्म हो गए हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव से यूपी के कई समीकरण बदल गए हैं। एक तरफ योगी सरकार अपराध और माफिया के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति की बात कर रही है। वहीं, सपा प्रमुख अखिलेश यादव 2012 में सरकार बनाने के बाद और सरकार जाने के बाद खुद को और पार्टी को माफियाओं से दूर रख रहे हैं।
चुनावी राजनीति से दूर धनंजय सिंह
मऊ सदर सीट की बात करें तो यहां से विधायक बने मुख्तार अंसारी का एक समय में यहां काफी प्रभाव हुआ करता था। मऊ-गाजीपुर के हर छोटे-बड़े चुनाव में उसका दबदबा था। योगी सरकार आते ही समय का पहिया घूम गया और आज वह सलाखों के पीछे है। इसी तरह हाल ही में पूर्व सांसद धनंजय सिंह को सात साल की सजा सुनाई गई है। उनका राजनीतिक भविष्य अधर में लटक गया है।
बाहुबली मुक्त प्रयागराज
माफिया अतीक अहमद और उसके परिवार ने आज के प्रयागराज और तब के इलाहाबाद में खूब राजनीति गुंडागर्दी खेल खेले हैं। हालांकि, अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की मौत के बाद उसके परिवारों के लिए चुनाव में दावा ठोकना मुश्किल हो गया है। क्योंकि अतीक की पत्नी शाइस्ता उमेश पाल और दो पुलिसकर्मियों की हत्या के मामले में फरार है। वहीं उसके दो बेटे उमर और अली जेल में हैं तथा भाई अशरफ की पत्नी फातिमा भी फरार है।
विजय मिश्रा को 15 साल की जेल
‘ब्राह्मण कार्ड’ खेलकर भदोही की ज्ञानपुर सीट से चार बार विधायक रहे विजय मिश्रा की गिनती भी बाहुबलियों में होती है। लेकिन आज वो भी जेल में हैं। इसलिए वे चुनाव नहीं लड़ सकेंगे।
अमरमणि त्रिपाठी को आजीवन कारावास
16 मई 2023 को हरिशंकर तिवारी की मौत के साथ ही गोरखपुर में अपराध और राजनीति का बवंडर खत्म हो गया। बाकी कहानी गोरखपुर के ताकतवर नेता अमरमणि त्रिपाठी की है, जिन्हें मधुमिता शुक्ला हत्याकांड में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है और राजनीति के साथ-साथ उनका बाहुबल कद भी अब पूरी तरह से जमींदोज हो चुका है।
बाहुबलियों के खिलाफ योग
माफियाओं का चुनाव से मोह भंग
अब माफियाओं का चुनाव का मोह खत्म हो गया है और राजनीति भी बदल गई है। बाहुबलियों को भी लगने लगा है कि आपराधिक छवि होने पर राजनीति की राह आसान नहीं है। अब देखना होगा कि 2024 के चुनाव में जहां एक तरफ चुनाव आयोग बाहुबलियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ राजनीतिक दल या तो खुद को उनसे अलग रख रहे हैं या उनके खिलाफ कार्रवाई को प्राथमिकता दे रहे हैं।
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