Maharashtra: देश को आजाद हुए एक चौथाई सदी बीत चुकी है, लेकिन आदिवासी समुदाय पर अत्याचार बंद नहीं हुए हैं। यह खुलासा हुआ है। महाराष्ट्र जैसे विकसित राज्य में भी गैर-आदिवासियों ने फर्जी आदिवासी प्रमाण पत्र प्रस्तुत करके लगभग 5,500 आदिवासियों के लिए आरक्षित नौकरियों और शैक्षणिक पदों को छीन लिया है।
हिन्दुस्थान पोस्ट को चौंकाने वाली जानकारी मिली है कि राज्य सरकार के विभिन्न विभागों में गैर-आदिवासी कर्मचारियों ने आदिवासी होने का गलत प्रमाण पत्र प्रस्तुत कर नौकरी हासिल की है, जबकि मेडिकल और इंजीनियरिंग क्षेत्र में गैर-आदिवासी छात्रों ने उच्च शिक्षा में आदिवासी बच्चों के लिए आरक्षित सीटें भी प्राप्त कर ली हैं। आदिवासी होने का झूठा प्रमाण पत्र प्रस्तुत करके उन्होंने ये सीटें प्राप्त की हैं।
राष्ट्रीय आयोग ने की समीक्षा
नई दिल्ली से राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने पिछले सप्ताह राज्य का दौरा किया और जनवरी 2021 से दिसंबर 2023 तक तीन वर्षों की समीक्षा की। आयोग के अध्यक्ष अंतर सिंह आर्य ने अधिकारियों से चर्चा कर राज्य में अनुसूचित जनजातियों के लिए क्रियान्वित की जा रही विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी ली।
उनके अधिकार दिलाने की दिशा में काम
आदिवासी भाई-बहनों को विकास के अवसर दिए जाने चाहिए तथा उनकी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए उन्हें समय पर आर्थिक, सामाजिक, स्वास्थ्य और शैक्षिक सुविधाएं उपलब्ध कराई जानी चाहिए। राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की अध्यक्ष अंतरा सिंह आर्य ने कहा कि इसके साथ ही, आदिवासी भाई-बहनों को उनका हक मिले, इसके लिए भी आयोग काम कर रहा है।
1,779 फर्जी कर्मचारी
इस समय एक रिपोर्ट तैयार की गई है, जिसमें जानकारी दी गई है कि कितने कर्मचारियों और छात्रों ने झूठे प्रमाण पत्र प्रस्तुत करके नौकरियों और उच्च शिक्षा में प्रवेश प्राप्त किया है। जनवरी 2021 से दिसंबर 2023 के बीच 27,843 कर्मचारियों के प्रमाणपत्रों की जांच की गई। इनमें से 1,779 कर्मचारियों के प्रमाण पत्र फर्जी निकले। आयोग के सदस्य निरुपम चकमा ने हिन्दुस्तान पोस्ट को बताया कि राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने इन धोखेबाज कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं।
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3,307 छात्रों ने की धोखाधड़ी
चकमा ने आगे कहा कि फर्जी प्रमाण पत्र न केवल सरकारी नौकरियों में बल्कि उच्च शिक्षा में भी पाए गए हैं। चूंकि मेडिकल और इंजीनियरिंग शिक्षा में आदिवासी छात्रों के लिए कुछ सीटें आरक्षित हैं, इसलिए गैर-आदिवासी छात्रों के बीच प्रवेश के लिए प्रतिस्पर्धा होती है। इस प्रवेश के लिए जब 95,419 विद्यार्थियों के अनुसूचित जनजाति प्रमाण-पत्रों की जांच की गई तो उनमें से 3,707 प्रमाण-पत्र फर्जी पाए गए।