करुणा शंकर
महाराष्ट्र में औरंगजेब और इस्लाम दोनों को जोड़कर उन्माद खड़ा करने का प्रयत्न चल रहा है। इसके लिए रुक-रुककर इस्लामी समाज के चंद लोग औरंगजेब की फोटो लेकर सार्वजनिक कार्यक्रमों में निकल जाते हैं, कुछ लोग इसे अपना सोशल मीडिया स्टेटस रख लेते हैं। यह सब उस समय हो रहा है, जब औरंगाबाद जिले का नाम परिवर्तित करके छत्रपति संभाजी नगर कर दिया गया है। परंतु, इस्लामी हैं कि मानते ही नहीं, गृहमंत्री ने सार्वजनिक रूप से कह दिया कि, औरंगजेब की औलादों को बख्शा नहीं जाएगा। इससे, औरंगजेब से यारी रखनेवालों को समझ जाना चाहिये था कि, सरकार क्या कह रही है। परंतु, तत्काल मुंबई का एक बड़बोला नेता औरंगजेब का हिमायती बनकर सोशल मीडिया पर पोस्ट डालता है, वह औरंगजेब रहमुल्लाह अलैह की खिदमत में कहता है कि, वह हिंदुओं का बड़ा समर्थक था। इतिहास गवाह है, छत्रपति संभाजी राजे को औरंगजेब ने कैसे क्रूरतम तरीके से मृत्यु की गोद में डाल दिया था, तब इन इस्लामियों की औरंगजेब से यारी क्यों है? क्या मजहब देखकर क्रूरकर्मा को इस्लामी अपना आका मान लेंगे और जिन हिंदुओं के साथ रहते हैं, जिन आदर्श पुरुषों ने भारत भूमि की रक्षा के लिए सर्वस्व दाँव पर लगाया उनके बलिदान को भूल जाएंगे?
कहते हैं कुल्हाड़ी में लकड़ी का हत्था न होता, लकड़ी के कटने का रस्ता न होता। औरंगजेब के खिदमतगारों पर जब कड़ी कार्रवाई करने के लिए सरकार प्रतिबद्धता दर्शा रही थी, उस समय राजनीति के ऐसे चेहरे जो कुलीन हिंदू परिवारों से संबद्ध हैं और उनकी छवि देश स्तर पर कद्दावर रही है, वे औरंगजेब के खिदमतगारों का समर्थन कर देते हैं। यह वही लकड़ी का हत्था हैं, जिसने हिंदुओं को उनकी भूमि पर बहुसंख्य होने के बाद भी हराया, बारी बारी से आक्रांताओं के हमलों से लहुलुहान करवाया और सैकड़ों वर्ष तक सोने की चिड़िया कहे जानेवाले भारत को लूटने में सहायता की, जिस कारण विदेशी आक्रांता भारत पर राज स्थापित करने में सफल हो पाए। इस्लामी, पुर्तगाली, अंग्रेज इन सभी ने भारत को छलनी किया, उसकी प्राचीनतम् संस्कृति को समाप्त करने का कार्य किया। विश्व में सबसे उन्नत ज्ञान भण्डार की स्थली को कुंद मानसिकता की खोह में धकेल दिया। ऐसे अंग्रेजों को उनकी धरती पर जाकर एक नेता निमंत्रित करता है कि, वह भारत के आंतरिक प्रकरणों को देखे और कदम उठाए, जबकि दूसरे नेता क्रूरकर्मा औरंगजेब के हिमायती बन जाते हैं।
देश में एक दल की लंबी सत्ता के पश्चात सत्तांतरण हुआ। मंदिरों की दबी हुई ईंटों और दीवारों पर चढ़े मस्जिदों के गुंबदों से होनेवाला दर्द जिव्हा बनकर बोलने लगा। अयोध्या से राम का वनवास समाप्त हुआ। इससे हिंदू मन आल्हादित हो गया। परंतु, राजनीतिक स्वार्थों से दबे नेता इसका भी विरोध कर बैठे। महाराष्ट्र जब छत्रपति संभाजी महाराज को अपना पूज्य मानकर उन्हें सिरोधार्य कर रहा है तो, इसका दु:ख स्वाभाविक रूप से वर्ग विशेष में झलक रहा है। मजहबी आधार पर भारत खण्डित होता रहा है। 1947 में भी हुआ, परंतु, औरंगजेब की कुछ औलादें यहीं रह गईं, जो अब रोग की भाँति छलनी करने का दम भरती रहती हैं और उनका साथ देते हैं, चंद मतों के लिए स्वार्थ लोलुप हिंदू नेता।
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स्वार्थ के लिए षड्यंत्र रचनेवाले भारत में भूमि में बहुतायत हुए हैं। देश नमक उत्पादन में विश्व में तीसरे क्रमांक पर रहा है, परंतु नमक हरामों की बात करें तो हम विश्व में पहले स्थान पर होंगे। क्योंकि, औरंगजेब का शरीर मरा है, परंतु, उसके विचार अब भी कुछ लोगों के मस्तिष्क को छलनी कर रहे हैं। इन कुंद मानसिक क्षमतावालों को समझना होगा जिस इस्लामी राज का वे सपना देख रहे हैं, उन इस्लामी राज वाले देशों में इस्लामियों की क्या स्थिति है? पाकिस्तान तो भारत के साथ स्वतंत्र हुआ था वहां इस्लामी किस हाल में हैं। इन्हीं इस्लामियों के भाई थे बांग्लादेशी, जिन्हें पूर्वी पाकिस्तान कहा जाता था, उनकी क्या गति की पश्चिमी पाकिस्तान के नेतृत्व ने। अरब देशों ने इराक को मरने दिया, सीरिया आतंक की आगोश में है। ईरान अपनी ही बहन बेटियों का हत्यारा बन गया है। मानवाधिकार के नाम पर यूरोप ने शरणार्थियों को पनाह दी और अब वही शरणार्थी उन देशों के आका बन गए हैं। इन हालातों को देखते हुए भारत में इस्लामियों की उन्नति विश्व में उदाहरण है, लेकिन, लगता है विचार मजहब की कैद में है। तभी तो औरंगजेब के लिए प्यार जाग जाता है, इस्लामी राष्ट्र बनाने के लिए टूलकिट बनाकर अपने ही देश के खिलाफ षड्यंत्र होने लगता है और सत्तालोलुप राजनेता रोटियां सेंकने के लिए समर्थन करने से नहीं चूकते।
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