“अंकल कुछ तो कीजिए…. शिवराज मामा को बोलिए… वर्ना…!” यूक्रेन में फंसी उज्जैन की बेटी की भावुक गुहार

भारतीय बच्चे रोमानिया बार्डर पर यहां-वहां हताश बैठे हैं। अब कुछ बच्चों में एंबेसी की असंवेदनशीलता को लेकर आक्रोश उपज रहा है।

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यूक्रेन की घड़ी हमारे समय से साढ़े 3 घंटे आगे चलती है। लेकिन इस समय युद्ध के कारण वहां वक्त थम-सा गया है। वहां घड़ी की टिक-टिक भले ही बम के धमाकों में दब गई हो, लेकिन फंसे भारतीय बच्चे, जो रोमानिया की बार्डर पर मायनस 5 डिग्री में बीती रात से खुली सड़क पर बार्डर खुलने का इंतजार कर रहे हैं, उनके दिल की धड़कनें लगातार बढ़ती जा रही हैं।

वे यूक्रेन की एंबेसी से लगातार गुहार लगा रहे हैं कि कोई तो आ जाओ, ताकि हमें रोमानिया में प्रवेश मिल सके, लेकिन उनकी सुननेवाला कोई नहीं है। इन्हीं बच्चों में से एक उज्जैन की बेटी मेघा त्रिवेदी को जब वीडियो कॉल किया गया, तो वो बिलख पड़ी। अंकल, प्लीज कुछ कीजिए….शिवराज मामा से बोलिए। अब तो हम मर ही जाएंगे।

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किया ऐसा अनुरोध
इस प्रतिनिधि से चर्चा करते हुए मेघा त्रिवेदी रोते हुए कहती है-अंकल प्लीज आप मीडिया के माध्यम से यह बात मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान तक पहुंचाओ। शिवराज मामा से कहो-हम अब तो मर ही जाएंगे। हमारे मोबाइल की बैटरियां खत्म हो रही हैं। यहां मायनस 5 डिग्री तापमान है। हम कल रात को 12 बजे (यूक्रेन के समय के अनुसार) रोमानिया बार्डर से 10 किलोमीटर दूर पहुंच गए थे। बसवाला यहीं छोड़ गया। कड़ाके की ठड में अपना जरूरी समान लिए हम बार्डर तक आए हैं। यहां भारत के 5 हजार बच्चे हैं। पोलेण्ड बार्डर के बच्चों को भी यहां भेजा जा रहा है। हमारे पहले सैकड़ों लोग कतार में लगे हैं। हो सकता है, अब हमारा सम्पर्क आप लोगों से, हमारे परिवार से न हो पाए। ऐसे में हमारा क्या होगा? आप बाबा महाकाल से प्रार्थना करो, वे हमारी मदद करने के लिए इंडियन एंबेसी को जगाएं। हमारी यहां कोई नहीं सुन रहा है। यूक्रेन की इण्डियन एंबेसी हमारे फोन नहीं उठा रही। हमारे पास बस दोपहर के खाने का सामान और पानी बचा है। यहां कुछ नहीं मिल रहा है। अब तो मन डर रहा है कि हम भारत आ पाएंगे भी या नहीं ?

घबरा मत बेटा….बाबा ठीक कर देंगे
इधर, आंसुओं को पलकों के नीचे छिपाते हुए मेघा के पिता मुकेश त्रिवेदी बोले, घबरा मत बेटा, बाबा महाकाल सब ठीक करेगा। वह सबकी चिंता करते हैं, तुम्हारी भी करेंगे। इस प्रतिनिधि ने जब मुकेश के कांधे पर हाथ रखा तो वे फफक-फफककर रो पड़े। बोले अभी एक महीना पूर्व बड़ी बेटी को विदा किया। उस समय न तो हाथ कांपे और न ही कलेजा फटा। सिर्फ इसलिए कि हमारे आसपास ही है वह। जब भी याद आएगी, उसके पास चले जाएंगे तत्काल। दो बेटियों के पिता मुकेश बताते हैं-अब ये छोटी आई थी शादी में। खूब इंजॉय किया। कहा था कि थोड़े दिन रूक जा, लेकिन नहीं मानी। बोली-पढ़ाई का नुकसान होगा। अभी वह इतनी दूर है कि न तो हम वहां जा सकते हैं और न ही भारत सरकार की एंबेसी के लोग वहां पहुंच रहे हैं। बाबा महाकाल का ही सहारा बचा है अब। मेघा की मां की स्थिति यह है कि वह बोल भी नहीं पा रही है। रो-रोकर सूजी आंखों से झांकती आशा के साथ वह पूछती है: भैया, सब कुछ ठीक हो जाएगा न? इस प्रतिनिधि के पास कोई जवाब नहीं था।

अब भारतीय बच्चों में पनप रहा है आक्रोश
चर्चा करते हुए मौके पर मौजूद एक भारतीय बच्चे ने कहा: हमारे साथ करीब 5 हजार बच्चे यहां पर हैं। लोगों की भीड़ बढ़ती जा रही है। हमारे पास ओढ़ने का भी सीमित सामान ही है। तापमान और नीचे जा सकता है। यहां हम लावारिस से पड़े हैं। उक्त युवक ने अपने मोबाइल को घुमाते हुए पूरे एरिये का नजारा दिखाया। भारतीय बच्चे यहां-वहां हताश बैठे थे।  कुछ बच्चों में एंबेसी की संवेदनहीनता को लेकर आक्रोश उपज रहा था। उन्हें जो नम्बर उपलब्ध करवाए गए थे, वे दिखावे के साबित हो रहे हैं। आगे क्या होगा, पता नहीं…….?

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