सेना (Army) ने स्पष्ट कर दिया है कि अग्निवीर (Agniveer) अमृतपाल सिंह ने आत्महत्या की थी, इसलिए सैन्य प्रोटोकाल (military protocol) के तहत उन्हें अंतिम संस्कार के समय सैन्य सम्मान (military honor) नहीं दिया गया। उल्लेखनीय है कि पंजाब के कोटली कलां के रहने वाले अमृतपाल सिंह (Amritpal Singh) को लेकर पिछले दिनों में एक बहस खड़ी करने का प्रयास किया गया कि देश के पहले अग्निवीर को उचित सम्मान नहीं दिया गया।
आम आदमी पार्टी से लेकर मीडिया और सोशल मीडिया से लेकर जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल रहे सत्यपाल मलिक तक ने यह प्रचारित करने का काम किया कि अमृतपाल सिंह को सैन्य सम्मान के साथ अंतिम विदाई इसलिए नहीं दी गई कि वे सेना भर्ती की नई योजना अग्निवीर के तहत भर्ती हुए थे। आम आदमी पार्टी की पंजाब सरकार ने अपनी ओर से एक करोड़ रुपये की सहायता राशि घोषित करते हुए मृतक को शहीद का दर्जी देने की घोषणा की है।
अमृतपाल ने ड्यूटी में की थी आत्महत्या
सेना से 15 अक्टूबर को साफ किया कि 10 जैक रिफ (जम्मू-कश्मीर लाइट इन्फैंटी) में बतौर संतरी भर्ती हुए अमृतपाल सिंह ने ड्यूटी के दौरान खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी। इसलिए उनके अंतिम संस्कार में सैन्य सम्मान नहीं दिया गया, क्योंकि खुद को पहुंचाई गई चोट से होने वाली मौत को शहीद का सम्मान नहीं दिया जाता है। सेना की ओर से जारी बयान में यह बात पुरजोर तरीके से कही गई है कि सेना सैनिकों के बीच इस आधार पर भेदभाव नहीं करती कि वे अग्निपथ योजना के कार्यान्वयन से पहले या बाद में भर्ती हुए थे। अमृतपाल सिंह की मौत के बारे में स्पष्टीकरण देते हुए सेना के नगरोटा मुख्यालय की ओर से पहले भी कहा गया था कि संतरी अमृतपाल सिंह की मौत राजौरी सेक्टर में संतरी ड्यूटी के दौरान खुद की लगी गोली से हुई थी। इससे फैले भ्रम को दूर करते हुए सेना ने अपनी संवेदना जताते हुए फिर कहा है कि “यह परिवार और भारतीय सेना के लिए गंभीर क्षति है कि अग्निवीर अमृतपाल सिंह ने संतरी ड्यूटी के दौरान खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली।”
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सेना की व्यवस्था के तहत पार्थिव देह की प्रक्रिया
सेना ने स्पष्ट किया है, “वर्तमान व्यवस्था के अनुरूप, चिकित्सीय-कानूनी प्रक्रियाओं के संचालन के बाद, पार्थिव देह को सेना की व्यवस्था के अन्तर्गत ही एक संरक्षक पार्टी के साथ अंतिम संस्कार के लिए उनके मूल स्थान पर ले जाया गया।” सेना ने यह भी साफ कर दिया है कि वह सशस्त्र बलों में शहीद होने वालों को मिलने लाभ और गार्ड ऑफ ऑनर के संबंध में अग्निपथ योजना के कार्यान्वयन से पहले या बाद में शामिल हुए सैनिकों के बीच अंतर नहीं करते हैं। सेना ने बयान में यह भी स्पष्ट किया गया है कि 1967 के प्रचलित सेना आदेश के अनुसार आत्महत्या करने वाले सैनिक सैन्य अंत्येष्टि के हकदार नहीं हैं। स्पष्ट है कि यदि सेना की किसी भी कोर का कोई भी जवान दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों में आत्महत्या जैसा कदम उठा लेता है तो उसे शहीदों की तरह सैन्य सम्मान नहीं दिया जाता है। सेना का कहना है कि इस विषय पर बिना किसी भेदभाव के लगातार पालन किया जा रहा है।
पात्रता के अनुसार वित्तीय सहायता
सेना की ओर से स्थिति को और साफ करते हुए कहा गया है, “आंकड़ों के अनुसार, 2001 के बाद से औसतन 100-140 सैनिकों के बीच वार्षिक क्षति हुई है, जहां मौतें आत्महत्या/खुद को लगी चोटों के कारण हुईं, ऐसे मामलों में सैन्य अंतिम संस्कार की अनुमति नहीं दी गई।” यहां यह भी स्पष्ट है कि पात्रता के अनुसार वित्तीय सहायता और राहत के वितरण को प्राथमिकता दी जाती है, जिसमें अंत्येष्टि के लिए तत्काल वित्तीय राहत भी शामिल है।
सैनिक की प्रतिष्ठा का ख्याल
अग्निवीर योजना के तहत भर्ती हुए अमृतपाल सिंह के अंतिम संस्कार का विषय चर्चा में आने के बाद और उससे उपजे नकारात्मक वातावरण के बाद सेना को सामने आकर यह बयान देना पड़ा है। सेना का कहना है वह आत्महत्या करने वाले सैनिकों के बारे में पूरा स्पष्टीकरण इसलिए नहीं देती क्योंकि इससे उसकी प्रतिष्ठा खराब होती है। हम दुःख की इस घड़ी में परिवार के सम्मान और प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए मौत के कारण को सार्वजनिक नहीं करते और गोपनीय ही रखते हैं।