अब नेताओं को राहत मिल सकती है! सर्वोच्च न्यायालय ने एक सुनवाई में प्रवर्तन निदेशालय पर जो टिप्पणी की है, वह इस केंद्रीय एजेंसी की अंधाधुंध कार्रवाइयों पर स्पीड ब्रेकर का कार्य कर सकता है। न्यायालय ने अपने निरीक्षण में कहा है कि, कानून का धड़ल्ले से उपयोग कानून की उपयोगिता को प्रभावित करता है।
सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार कानून का उपयोग लोगों को कारागृह में डालने के लिए नहीं होना चाहिए। यह टिप्पणी झारखंड की एक निजी क्षेत्र की कंपनी द्वारा प्रवर्तन निदेशालय की कार्रवाई को चुनौती देनेवाली याचिका पर आई है। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एन.वी रमण्णा और न्यायाधीश ए.एस बोपन्ना और हिमा कोहली ने अपने निरीक्षण में कहा की है कि, प्रवर्तन निदेशालय कानून को शिथिल कर रहा है, वह भी मात्र इसी प्रकरण में ही नहीं, जब इस कानून का उपयोग एक हजार रुपए या सौ रुपए के धनशोधन प्रकरणों में किया जाएगा तो क्या होगा? आप सभी को सलाखों के पीछे नहीं डाल सकते। कानून का ऐसा अंधाधुंध उपयोग उसके महत्व को कम करता है।
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ये है प्रकरण
झारखंड की स्टील क्षेत्र में काम करनेवाली कंपनी उषा मार्टिन लिमिटेड ने उच्च न्यायालय के निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। यह प्रकरण इस्पात अयस्कों के निर्यात पर अर्थ दंड से संबंधित है। इसमें प्रवर्तन निदेशालय ने धनशोधन कानूनों के अंतर्गत आपराधिक कार्रवाई शुरू करने के लिए कंपनी को समन जारी किया था।