Muslim Women Alimony: सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ जाएगा मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, इस फैसले को देगा चुनौती

एआईएमपीएलबी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर चर्चा करने और उपलब्ध कानूनी विकल्पों पर विचार-विमर्श करने के लिए बैठक बुलाई थी।

163

Muslim Women Alimony: एआईएमपीएलबी (ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड) गुजारा भत्ता के मामले में सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को चुनौती देगा, जिसमें तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को इद्दत की अवधि के बाद भी गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया गया है। यह फैसला रविवार (14 जुलाई) को दिल्ली में हुई बैठक में लिया गया।

एआईएमपीएलबी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर चर्चा करने और उपलब्ध कानूनी विकल्पों पर विचार-विमर्श करने के लिए बैठक बुलाई थी। बैठक में बोर्ड ने दलील दी कि शरिया कानून के मुताबिक, एक महिला को गुजारा भत्ता सिर्फ अपनी इद्दत (प्रतीक्षा अवधि) पूरी होने तक ही मिलना चाहिए, उसके बाद वह दोबारा शादी करने के लिए स्वतंत्र है।

यह भी पढ़ें- PM Modi’s Russia visit: पीएम का रूस दौरा ने दुनिया में लहराया भारत का परचम

शरिया कानून के मुताबिक
बोर्ड ने आगे दलील दी कि अगर बच्चे महिला के साथ रहते हैं, तो उनका खर्च उठाना पति की जिम्मेदारी है। पर्सनल लॉ बोर्ड ने यह भी दलील दी कि भारतीय मुसलमानों को शरिया कानून के मुताबिक अपनी बेटियों को संपत्ति में हिस्सा देना चाहिए। बोर्ड ने आगे कहा कि अगर तलाकशुदा महिला को अपना गुजारा करने में दिक्कत आती है, तो अलग-अलग राज्यों के वक्फ बोर्ड को इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए, क्योंकि बोर्ड की संपत्ति मुसलमानों की है।

यह भी पढ़ें- Bihar: किशनगंज में जीप-ट्रक की टक्कर में पांच लोगों की मौत, सात घायल

सुप्रीम कोर्ट का फैसला
एक ऐतिहासिक फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई को फैसला सुनाया कि मुस्लिम महिलाएं दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 के तहत अपने पति से भरण-पोषण मांग सकती हैं, जो पत्नी के भरण-पोषण के अधिकार से संबंधित है, यह सभी विवाहित महिलाओं पर लागू होता है, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो। न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने एक अलग लेकिन समवर्ती फैसले में कहा कि पूर्ववर्ती सीआरपीसी की धारा 125, जो पत्नी के भरण-पोषण के कानूनी अधिकार को संबोधित करती है, मुस्लिम महिलाओं पर भी लागू होती है।

यह भी पढ़ें- PM Modi’s Russia visit: पीएम का रूस दौरा ने दुनिया में लहराया भारत का परचम

पर्सनल लॉ बोर्डों के बीच तीखी बहस
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने फैसला सुनाते हुए कहा, “हम इस प्रमुख निष्कर्ष के साथ आपराधिक अपील को खारिज कर रहे हैं कि धारा 125 सभी महिलाओं पर लागू होगी, न कि केवल विवाहित महिलाओं पर।” इस फैसले ने मुस्लिम समुदाय और विभिन्न पर्सनल लॉ बोर्डों के बीच तीखी बहस छेड़ दी है। AIMPLB की स्थिति इस विश्वास पर आधारित है कि यह आदेश इस्लामी शरीयत कानून के विपरीत है, जिसमें कहा गया है कि तलाक के बाद पति को केवल इद्दत अवधि (सवा तीन महीने की समयावधि) के दौरान ही भरण-पोषण देने की बाध्यता है। इस अवधि के बाद, महिला पुनर्विवाह करने या स्वतंत्र रूप से रहने के लिए स्वतंत्र है, और पूर्व पति अब उसके भरण-पोषण के लिए जिम्मेदार नहीं है।

यह वीडियो भी देखें-

Join Our WhatsApp Community
Get The Latest News!
Don’t miss our top stories and need-to-know news everyday in your inbox.