“पबजी गेम की तरह गोलियां बरसा रहे थे हमास के आतंकी!” इजरायल से लौटे नेपाली छात्रों ने बताया

इजरायल से काठमांडू पहुंचीं शोभा पासवान ने रोते हुए वहां की आपबीती बयां की। शोभा ने कहा कि हमास के हमले के बाद ही हम सभी नेपाली इकट्ठा होकर बंकर में सुरक्षित होकर पहुंच गए थे।

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इजरायल के युद्धग्रस्त क्षेत्र में फंसे नेपाली छात्रों ने काठमांडू पहुंचने के बाद आपबीती सुनाई है कि उनकी आंखों के सामने लोगों को गोलियों से भून दिया गया। अपने अनुभव में छात्रों ने कहा कि वहां का नजारा किसी पबजी मोबाइल गेम की तरह लग रहा था। इन छात्रों को सुरक्षित नेपाल वापसी की खुशी तो है, लेकिन अपनी आंखों के सामने अपने सहपाठियों की हत्या और कुछ को बंधक बना लेने का दर्द भी भरा है।

इजरायल से लौटे रेजन शाही ने अपना अनुभव सुनाते हुए बताया कि सुदूर पश्चिम विश्वविद्यालय के 114 छात्रों की टोली इजरायल सरकार के लर्न एंड अर्न प्रोग्राम के तहत वहां गई थी। वैसे तो वहां बम धमाके और रॉकेट से हमला सामान्य जैसी घटना हो गई थी, लेकिन हमास आतंकी जिस बर्बरता और निर्दयता से लोगों की हत्या कर रहे थे, वह नजारा देखकर दिल दहल गया।

सदमे से आज भी नहीं उबरे हैं छात्र
शाही ने कहा कि हमारे साथ ही रहे छात्रों की इतनी बेरहमी से हत्या कर दी गई, जिसके सदमे से हम लोग आज भी बाहर निकल नहीं पाए हैं। आंखों में आंसू लिए रेजन ने कहा कि वहां का नजारा देख कर ऐसा लग रहा था, जैसे पबजी मोबाइल गेम चल रहा हो और पैराशूट से कूद कर सैनिक अंधाधुंध गोलियां चला रहे हों।

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24 घंटे बंकर से नहीं निकले बाहर
इजरायल से काठमांडू पहुंचीं शोभा पासवान ने रोते हुए वहां की आपबीती बयां की। शोभा ने कहा कि हमास के हमले के बाद ही हम सभी नेपाली इकट्ठा होकर बंकर में सुरक्षित होकर पहुंच गए थे। लगातार हमलों और टैंक से गोलियां बरसने के कारण पहले दिन 24 घंटे तक बंकर से बाहर नहीं निकल पाए। ना खाने-पीने का ठिकाना ना वाशरूम जाने का। चौबीस घंटे बाद वाशरूम जाने के लिए 5 मिनट का समय मिला। वाशरूम जाते ही फिर से सायरन बजने लगा और भाग कर बंकर में जाना पड़ा। तीन दिनों तक यही सिलसिला चलता रहा।

कुछ सुने बिना चला रहे थे गोली
शोभा पासवान ने बताया कि चौथे दिन कुछ खाने का सामान लेने मेरे कुछ साथी बाहर एक दुकान पर गए, तो हमास के हमलावरों ने अंधाधुंध गोलियां चलानी शुरू कर दीं। हमने चिल्लाकर कहा कि ‘वी आर नेपाली डोंट शूट अस’ लेकिन ऐसा लग रहा था कि जैसे उनके सिर पर खून सवार है और बिना कुछ सुने, बिना कुछ विचार किए गोलियां चलाते रहे। हमारी आंखों के सामने हमारे कुछ साथी मारे गए। कुछ को बंधक बना कर ले गए। मैं अभी भी ट्रामा में हूं। घर आने की खुशी जरूर है, पर अपने कुछ साथियों की मौत का नजारा अभी भी मेरे जेहन में बसा हुआ है।

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