नई दिल्ली। नेपाल भारत के साथ अपनी रोटी-बेटी के संबंधों को भूलकर आज भारत को घेरने में जुटा हुआ है। वह सीमाओं पर भारत के लिए जितना संभव हो सकता है, उतनी मुसीबतें बो रहा है, लेकिन भारत ने इस परिस्थिति में भी अपना मानव धर्म निभाकर पूरी दुनिया के सामने मिसाल पेश की है। नेपाल की एक बीमार बच्ची की जान बचाने के लिए भारत ने सभी तरह की दुश्मनी और नियम-कानून को ताक पर रख दिया तथा अंतर्राष्ट्रीय झूला पुल खोलकर जहां अपनी दरियादिली का परिचय दिया, वहीं वसुधैव कुटुम्बकम की अपनी नीति और परंपरा को और मजबूती प्रदान की।
मासूम के लिए खोला गया झूला पुल
दरअस्ल नेपाल की करीब एक माह की बच्ची की आंत में गांठ पड़ जाने के कारण वह गंभीर रुप से बीमार है। भारत से लगे मल्लिकार्जुन गांव की बच्ची का लंबे समय से धारचुला के बलुवाकोट के अस्पताल में इलाज चल रहा था। लेकिन उसकी हालत दिनोंदिन खराब होती जा रही थी। अस्पताल के डॉक्टरों ने उसके परिजनों को उसे भारत में इलाज कराने की सलाह दी थी। लेकिन झूला पुल बंद होने के कारण उन्हें समझ में नहीं आ रहा था, कि वे क्या करें। इस हालत में नेपाल के कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भारतीय अधिकारियों के पास यह जानकारी पहुंचाई। उसके बाद पिथौरागढ़ जिला प्रशासन के अधिकारियों ने मासूम की जिंदगी बचाने के लिए तत्काल झूला पुल 20 मिनट के लिए खोलने का आदेश दिया। पुल क्या खुला, मानो दर्द से तड़पती मासूम के माता-पिता के मन में उम्मीद की एक किरण जाग गई। वे अपने आंसू नहीं रोक पाए। रोते हुए उन्होंने कहा,” यूं ही नहीं भारत को महान कहा जाता है।”
फिलहाल वे बच्ची के साथ मंगलवार को भारत के पिथौरागढ़ पहुंच चुके हैं। यहां उन्हें अपनी बच्ची को बेहतर उपचार मिलने की उम्मीद है।
नेपाल निभा रहा है दुश्मनी
पिछले करीब छह महीनों से चीन की शह पर नेपाल ने भारतीय सीमा पर तमाम तरह की परेशानियां खड़ी कर रखी हैं। हाल ही उसने भारत पर कूटनीतिक दबाव बनाने के लिए फिर से दो बोर्डर आउट पोस्ट (बीओपी) स्थापित किए हैं। चितवन के माणी नगरपालिका क्षेत्र में नेपाल ने दो प्राथमिक स्कूलों को खाली कर बीओपी स्थापित की हैं। यह नेपाल की भारत को रणनीतिक आधार पर घेरने की तैयारी बताई जा रही है। नेपाल इससे पूर्व भी दार्चुला व बैतड़ी में 12 से अधिक बीओपी स्थापित कर चुका है। इससे पहले वह भारत के पिथौरागढ़ के पास के कुछ इलाके को नेपाल का हिस्सा बतानेवाला नक्शा जारी कर चुका है।
चीनी नागरिकों ने भी माना था “भारत महान है”
पूर्वी लद्दाख में एलएसी के पास 15 जून को चीनी सेना के साथ भारतीय जवानों की हुई हिंसक झड़प के बाद से चीन और भारत के रिश्ते बेहद खराब दौर से गुजर रहे हैं, लेकिन सीमा पर तैनात हमारे जिगरबाज जवानों ने अपना मानव धर्म नहीं छोड़ा है। 3 सितंबर को उत्तरी सिक्किम के पठार क्षेत्र में तीन चीनी नागरिक रास्ता भटक गए थे। वहां का तापमान शून्य से भी कम होने के कारण उन लोगों को कई तरह की कठिनाइयों का सामान करना पड़ रहा था। उन्हें परेशान देखकर हमारी सेना के जवानों ने तीनों नागरिकों की मदद की। उन्हें ऑक्सजीन, खाना और गर्म कपड़े के साथ ही चिकित्सीय सहायता कर सकुशल चीन जाने में मदद की। यही नहीं, भारतीय सेना ने इंसानियत का धर्म निभाते हुए 13 याक और 4 बछड़ों को भी चीन को वापस कर दिया था। ये जानवर अरुणाचल प्रदेश के पूर्वी कामेंग में 31 अगस्त 2020 को एलएसी पर भटक गए थे और भारतीय क्षत्र में आ गए थे। चीनी अधिकारियों ने भारतीय सेना को उनकी दयालुता के लिए धन्यवाद दिया था। भारतीय सेना ने पशुओं को ऐसे समय चीन को वापस किया था, जब दोनों देशों के बीच सीमा पर तनाव बना हुआ था। दूसरी तरफ चीन ने जंगल में गए पांच अरुणाचल प्रदेश के युवकों को यह कहकर अगवा कर लिया था, कि वे हमारे क्षेत्र में थे।
“यूं ही नहीं भारत को महान कहा जाता है” बोलें दुश्मन देश के लोग
नेपाल की एक बीमार बच्ची की जान बचाने के लिए भारत ने सभी तरह की दुश्मनी और नियम-कानून को ताक पर रख दिया तथा अंतर्राष्ट्रीय झूला पुल खोलकर जहां अपनी दरियादिली का परिचय दिया, वहीं वसुधैव कुटुम्बकम की अपनी नीति और परंपरा को और मजबूती प्रदान की।