PM Sangrahalaya: PM Museum नहीं स्वीकार करेगा गोपनीय दस्तावेज, जानें सोनिया गांधी और नेहरू से कैसे जुड़ा है मामला

सोनिया गांधी द्वारा 2008 में जवाहरलाल नेहरू के निजी संग्रह से कागजों के बक्से वापस लेने और इन कागजों के कई सेटों तक पहुंच पर रोक लगाने के बाद, प्रधानमंत्री संग्रहालय एवं पुस्तकालय ने अब निर्णय लिया है कि वह भविष्य में प्रतिष्ठित व्यक्तियों के निजी कागजात के दानकर्ताओं को ऐसी सामग्री को सार्वजनिक करने पर अनिश्चित शर्तें लगाने की अनुमति नहीं देगा।

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कांग्रेस नेता और राज्यसभा सदस्य सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने 2008 में राष्ट्रीय संग्रहालय (National Museum) और पीएम संग्रहालय (PM Museum) से जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) के दस्तावेजों (Documents) के कई बक्से हटा दिए थे। इसके बाद से प्रधानमंत्री संग्रहालय और पुस्तकालय ने फैसला किया है कि अगर किसी गणमान्य व्यक्ति के निजी दस्तावेज (Personal Documents) पीएम संग्रहालय में जमा किए जाने हैं, तो उन दस्तावेजों को अनिश्चित काल तक गोपनीय रखने की शर्त को स्वीकार नहीं किया जाएगा।

बता दें कि अब से पीएमएमएल दानदाताओं से दस्तावेजों के किसी भी नए सेट को स्वीकार करने से पहले अधिकतम 5 वर्षों के लिए गोपनीयता को मंजूरी देगा। कुछ मामलों में, गोपनीयता अधिकतम 10 वर्षों तक बरकरार रखी जा सकती है।

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नेहरू के कागजातों का डिजिटलीकरण
मिली जानकारी के अनुसार, पीएमएमएल ने कई दशकों से अपने पास रखे निजी संग्रहों को स्वयं खोलने का भी निर्णय लिया है, जिनमें प्रथम लोकसभा अध्यक्ष जी.डी. मावलंकर, नेहरू से संबंधित निजी अभिलेखागार के 2 लाख 80 हजार पन्नों का एक सेट खोलने का भी फैसला किया है, जिस पर 2008 में मावलकर, नेहरू की भतीजी नयनतारा सहगल और सोनिया गांधी ने दावा नहीं किया था। नेहरू के कागजात वर्तमान में डिजिटल किये जा रहे हैं। सूत्रों ने कहा कि पूरा सेट दो महीने में शोधकर्ताओं के लिए ऑनलाइन उपलब्ध होगा।

क्या है पूरा मामला?
नेहरू मेमोरियल संग्रहालय और पुस्तकालय, पूर्व में प्रधानमंत्री संग्रहालय और पुस्तकालय, देश का सबसे बड़ा संग्रहालय है। संग्रहालय में 1000 से अधिक महत्वपूर्ण नेताओं और गणमान्य व्यक्तियों के दस्तावेज़ एकत्र किए गए हैं। सोनिया गांधी ने इस संग्रहालय में प्रधानमंत्री नेहरू के कागजात के 51 बक्से भर दिए और उन्हें हटा दिया। ये दस्तावेज़ 1971 में इंदिरा गांधी और बाद में सोनिया गांधी द्वारा संग्रहालय को दान कर दिए गए थे। अब सरकार इन दस्तावेजों को वापस पाने की कोशिश कर रही है और इसके लिए कानूनी जांच की जा रही है। उसी पृष्ठभूमि में यह निर्णय लिया गया है।

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