हम पुलिसवाले पिछले दो वर्षों से लगातार निशाने पर हैं। कोई घटना हुई तो लोग हम पर ही कमेंट करने लगते हैं। लेकिन उन्हें यह सोचना चाहिए कि, इस शहर को जितना वो चाहते और जानते हैं, उससे कम सम्मान हम भी नहीं देते।
हम तो मुंबई में उस समय से हैं जब सात द्वीपों का समूह जुड़कर मुंबई शहर बन रहा था। लेकिन, दर्द मैं तबका नहीं बल्कि ताजा बताता हूं, कैसा होता है एक पुलिसवाले का जीवन?
मार्च 2020 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोविड-19 के भयानक संक्रमण से देशवासियों को बचाने के लिए सौ प्रतिशत लॉकडाउन की घोषणा कर दी। आप घरों में थे, थाली बजाई, ताली बजाई, दिये जलाए… उस समय हम सड़कों पर थे, परिवार डर रहा था, कहीं यह दिये एक दिन हमारी ही फोटो के आगे न जलाना पड़े। कई दिनों तक चौबीसो घंटे की नौकरी की, लोगों को रोकने के लिए कार्रवाई की तो वीडियो बनाकर हमें ही भला बुरा कहा गया। जब शवों को उठानेवाला कोई नहीं था, जब बीमार को छूनेवाला कोई नहीं था, उस काल में घर की गलियों से लेकर सड़क और अस्पतालों से लेकर स्मशान तक हम खड़े थे। मैं भले ही आपके सामने खड़ा हूं, परंतु मेरे एक हजार से अधिक सहकर्मी इतने भाग्यवान नहीं थे। कोरोना ने उन्हें छीन लिया। कोरोना प्रतिबंध ढीले हुए तो आप सब घरों से निकले, काम धंधे संभालने लगे। हमारा क्या था हम तो वैसे ही सड़कों पर आपके बीच सेवा कर रहे थे, कर रहे हैं।
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कभी सुशांत सिंह राजपूत की मौत का मामला तो कभी संजय राठोड़ के प्रकरण को लेकर हम पर टिप्पणियां की गई, जांच में ढिलाई के आरोप लगे, पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख के प्रकरण में भी हम पर निशाना साधा गया। लड़ाई बड़े लोगों की और निशाना हम बने। इस बीच हमारे वरिष्ठ अधिकारियों की दृष्टि पड़ी तो उन्होंने आठ घंटे की नौकरी कर दी। साप्ताहिक छुट्टियां अनिवार्य कर दीं। हम खुश थे, लेकिन यह खुशी लंबी नहीं चली।
ये नेता लोग आपस में भिड़ गए। मैं तो बोल भी नहीं सकता ये सब, बस सहते हुए सेवाएं दे सकता हूं। लेकिन आज आपसे कहूंगा… पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख गिरफ्तार हुए, हमारी फौज लग गई, उनकी सुरक्षा में। इसके थोड़े दिन बाद कैबिनेट मंत्री नवाब मलिक भी हमारी कस्टडी में आ गए। हमारी टीम इन नेताओं की सुरक्षा में बढ़ा दी गई। नेताओं की सुरक्षा का बोझा बढ़ गया है। एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार के घर एसटी कर्मचारियों ने आंदोलन कर दिया, तो हम पर लापरवाही के आरोप लग रहे हैं। ये वकील साब भी अंदर आ गए तो उनके परिवार की भी सुरक्षा का ध्यान रखना पड़ रहा है। हम लापरवाह नहीं है साहब, सोचिये दो साल से हमारी पुलिस फोर्स में नया मानव बल नहीं जुड़ा है। 250 चालक और 100 अमलदारों की जो भर्ती वर्ष भर पहले की गई थी, उनका प्रोसीजर अब पूरा हो रहा है। इन कमियों के बाद भी रमजान, गणेशोत्सव, क्रिसमस, नवरोज सब दिन सुरक्षा का तानाबाना हमारे ही कंधे पर टिका है। हमारा त्यौहार छूटता है तभी आपका त्यौहार शांति से बीतता है।
इस बीच समय कभी रुकता है क्या? हर साल हमारे साथी सेवा निवृत्त हो रहे हैं, जबकि उनकी जगह नए नहीं लिये जा रहे हैं। उस पर हजारों का मानव बल विशेष लोगों की सुरक्षा में लगा हुआ है। हमारी आठ घंटे की नौकरी इन नेता लोगों के चक्कर में साठ घंटे की हो गई है साहब… साप्ताहिक छुट्टी तो अब सपने में भी नहीं आती…
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