झंडा देश की पहचान और उसका सम्मान है। अंग्रेजों से देश को स्वतंत्र कराने के लिए क्रांतिकारियों ने अपना सर्वस्व त्यागकर रणभेरी सजा दी थी। इसी काल में दूर दृष्टा स्वातंत्र्यवीर सावरकर इस लड़ाई को देश में सीमित न रखकर अंतरराष्ट्रीय पटल पर उठाने की योजना पर कार्य कर रहे थे। इसके लिए देश की एक पहचान के रूप में पहला झंडा निर्मित करने का उन्होंने बीड़ा उठाया था।
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स्वातंत्र्यवीर सावरकर द्वारा निर्मित यह ध्वज राष्ट्र का पहला ध्वज था। लेकिन इसे क्यों बनाया गया इसके पीछे एक महत्वपूर्ण लक्ष्य था। जर्मनी के स्टुटगार्ट में 18 से 24 अगस्त, 1907 के मध्य अंतरराष्ट्रीय समाजवादी परिषद का आयोजन किया गया था। इसमें विश्व के 900 प्रतिनिधि साम्राज्यवाद, सैनिकीकरण, स्थानांतरण और महिलाओं के मताधिकार पर चर्चा करनेवाले थे। इसका आयोजन यूरोप के समाजवादी और मजदूर वर्ग ने किया था।
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क्या था लक्ष्य?
स्वातंत्र्यवीर सावरकर के लिए ये एक बड़ा मंच था। जहां स्वतंत्रता आंदोलन के स्वर को गुंजित करने से इसे नई पहचान मिलती। इस आयोजन में मादाम भिकाजी और सरदारसिंह राणा सम्मिलित होंगे ऐसा निर्णय लिया गया। इसके लिए स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने स्वतंत्र भारत के लिए एक संकल्पित ध्वज का निर्माण किया। इस ध्वज में 21 सम चौड़ाई लिए हुए तीन पट्टे थे। सबसे ऊपर हरा (मुसलमानों के लिए पवित्र रंग), मध्य में भगवा (बौद्ध और सिखों के लिए पवित्र रंग) और सबसे नीचे हिंदुओं के लिए पवित्र ताम्र रंग। मध्यभाग में स्वर्णाक्षरों से ‘वंदेतारम्’ बुना हुआ था। सबसे ऊपर के हिस्से में 8 कमल थे। नीचे दाएं हिस्से में सूर्य और दाहिने हिस्से में चंद्र की आकृति थी। ये देश के विविध धर्म और प्रांतों के प्रतीक थे।
पुणे में मना स्थापना दिवस
स्वातंत्र्यवीर सावरकर द्वारा निर्मित ध्वज का स्थापना दिवस 1937 में पुणे में मनाया गया। इस दिन अपने संबोधन में सावरकर ने कहा कि,
इस ध्वज का निर्माण करते समय हमारे सम्मुख विविध राष्ट्रों के ध्वज थे। अमेरिका के ध्वज पर तारे हैं। प्रत्येक तारा अमिरेका के राज्यों का प्रतीक है। देशभक्त भारतीय युवकों के समूह ने अभिनव भारत संस्था की स्थापना की थी। ध्वज का हरा रंग यही इंगित करता है। भागवा रंग वैभव और विजय का प्रतीक है जबकि ताम्र रंग शक्ति का प्रतीक है।
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देश को ऐसे मिला तिरंगा ध्वज
कांग्रेस को पूर्ण बहुमत प्राप्त था। ऐसे में देश का ध्वज भगवा हो इसकी संभावना बहुत ही क्षीण थी। इस स्थिति को भांपते हुए सावरकर ने ध्वज समिति को 7 जुलाई, 1947 को तार (टेलीग्राम) से सूचित किया।
उन्होंने लिखा,
हिंदुस्थान का राष्ट्रध्वज भगवा ही होना चाहिए। जिस ध्वज पर भगवा पट्टा नहीं होगा उस ध्वज को हिंदू जगत कभी स्वीकार नहीं करेगा। इसके अलावा कांग्रेस के वर्तमान ध्वज पर बना चरखा हटाकर उसके स्थान पर चक्र या प्रगति या सामर्थ्य दर्शक चिन्हों को रखना चाहिए। सभी हिंदू संगठनों और नेताओं को इसकी मांग करनी चाहिए।
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…और तिरंगे पर आया चक्र
स्वातंत्र्यवीर की इस मांग को संविधान समिति में पेश करने की बात डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर ने स्वीकार की थी। लेकिन कांग्रेस का पूर्ण बहुमत होने के कारण भगवा ध्वज की मांग स्वीकार नहीं हुई लेकिन चरखा हटाकर उसके स्थान पर चक्र को स्थापित करने की सावरकर की दूसरी मांग को मान्य कर लिया गया।