सागर से भरेगी किसकी गागर?

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मुंबई में पानी कटौती को दूर करने के लिए मनोर स्थित समुद्र के 200 एमएलडी खारे पानी को पीने योग्य बनाने के लिए प्रोजेक्ट लगाया जाएगा। इस डिस्टीलाइजेशन प्रोजेक्ट की रुपरेखा की जानकारी मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने ली है। पिछले  15 वर्षों में चौथी बार इस प्रोजेक्ट को लेकर चर्चा गरम है। हालांकि समुद्र के खारे पानी को मीठा बनाने का यह प्रोजेक्ट काफा खर्चीला है। बताया जा रहा है कि इस पानी की कीमत प्रति हजार लीटर 70 रुपए आने का अनुमान है, जबकि अभी जो मुंबईकरों को पानी सप्लाई किया जाता है, उसकी कीमत प्रति हजार लीटर मात्र 12-13 रुपए ही है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि इस सागर के मीठे पानी से किसकी गागर भरेगी?

सीएम उद्धव ठाकरे ने ली जानकारी
बता दें कि इसके खर्च को देखकर ही अब तक महानगरपालिका इसे गंभीरता न लेकर ठंडे बस्ते में डालती रही है। लेकिन एक बार फिर राज्य के सीएम उद्धव ठाकरे ने इस मामले को उठाकर इस प्रोजेक्ट को सुर्खियों में ला दिया है। इससे पहले बीएमसी के पूर्व आयुक्त अजोय मेहता ने इसे असंभव बतााया था। लेकिन उसी मेहता की उपस्थिति में इस प्रोजेक्ट को प्रारुप प्रस्तुत किया गया। पहले जिस प्रोजेक्ट को उन्होंने असंभव बताया था, उसी प्रोजेक्ट को सीएम द्वारा दिलचस्पी लेने के बाद उन्होंने मूक सहमति दे दी है।

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25-30 एकड़ में बनेगा प्रोजेक्ट
सीएम के समक्ष प्रस्तुत किए गए इस प्रोजेक्ट के लिए मनोर में जगह उपलब्ध कराई जाएगी। 25 से 30 एकड़ में बननेवाला इस प्रोजेक्ट को ढाई से तीन वर्ष में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। यह जानकारी मुख्यमंत्री के साथ ही मुंबई मनपा की महापौर किशोरी पेडणेकर और आयुक्त इकबालसिंह चहल ने दी है।

प्रोजेक्ट का सफर

  • मनपा नगरसेवक खान बस्तीवाला ने सबसे पहले वर्ष 2003 में समुद्र के खारे पानी को पीने योग्य बनाने की मांग की थी, लेकिन तब प्रशासन ने इसके खर्च को देखककर इसे अस्वीकार कर दिया था।
  • वर्ष 2010 में एक बार फिर पानी की किल्ल्त के मद्देनजर इस प्रस्ताव पर चर्ची हुई। लेकिन समुद्र के खारे पानी को मीठा बनाने में प्रति एक हजार लीटर 70 रुपए खर्च आने से इस प्रस्ताव को एक बार फिर ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था।
  • वर्ष 2015-16 में एक बार फिर इस पर चर्चा हुई। उस समय भी मनपा प्रशासन ने काफी महंगा बताकर इसकी फाइल बंद कर दी।

बड़े पैमाने पर बिजली की खपत
दरअस्ल इस प्रोजेक्ट में बड़े पैमाने पर बिजली की खपत होने से इसकी लागत बढ़ने की बात कही जाती रही है। अगर जमीन मुफ्त में भी मिल जाती है तो इस प्रोजेक्ट में बड़े पैमाने पर बिजली के इस्तेमाल होने से एक हजार लीटर को मीठा पानी बनाने मे कम से कम 70 रुपए खर्च आता है, जबकि वर्तमान में जो पीने का पानी मुंबईकरों को आपूर्ति की जा रही है, उसका दर प्रति हजार लीटर 12-13 रुपए ही है। ऐसे में सवाल उठाए जा रहे हैं कि वॉटर डिस्टीलाइजेशन का यह प्रोजेक्ट क्या लोगों के लिए उपयोगी होगा?

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