Sharjeel imam: दिल्ली उच्च न्यायालय से शरजील इमाम को बड़ा झटका, जानें क्या है मामला

31 जनवरी को पारित आदेश में न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने कहा कि फिल्म को अभी केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) से सेंसर प्रमाणपत्र नहीं मिला है और फिल्म के प्रमाणन पर विचार जारी है

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Sharjeel imam: दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने शरजील इमाम (Sharjeel Imam) द्वारा दायर उस याचिका पर विचार करने से इनकार (refused to consider) कर दिया, जिसमें उन्होंने फिल्म ‘2020 दिल्ली’ (2020 Delhi) की रिलीज़ को रोकने की मांग की थी। इमाम का कहना था कि इस फिल्म से उनके खिलाफ दिल्ली दंगों से जुड़े मुकदमे और जमानत आवेदन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

31 जनवरी को पारित आदेश में न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने कहा कि फिल्म को अभी केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) से सेंसर प्रमाणपत्र नहीं मिला है और फिल्म के प्रमाणन पर विचार जारी है, इसलिए इस मामले में तत्काल कोई निर्णय लेना जल्दबाजी होगी।

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न्यायालय ने क्या कहा?
न्यायालय ने कहा, “जब तक फिल्म के प्रमाणन के लिए सीबीएफसी से अनुरोध लंबित है, तब तक इस अदालत से किसी भी प्रकार के आदेश की उम्मीद नहीं की जा सकती।” फिल्म के ट्रेलर पर इमाम की आपत्ति के संदर्भ में, अदालत ने निर्माता द्वारा यह आश्वासन दिया कि ट्रेलर के शुरुआत में उचित अस्वीकरण दिखाई देगा। न्यायालय ने यह भी कहा कि निर्माता अस्वीकरण के स्वरूप पर सहमत हो गए हैं और यह बॉम्बे उच्च न्यायालय द्वारा अनुमोदित अस्वीकरण के समान होगा।

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2020 में दिल्ली में हुए दंगों
यह फिल्म 2020 में दिल्ली में हुए दंगों और नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों पर आधारित बताई जा रही है। फिल्म का निर्देशन देवेंद्र मालवीय ने किया है, और इसमें बृजेंद्र काला, चेतन शर्मा, आकाशदीप अरोड़ा और सिद्धार्थ भारद्वाज मुख्य भूमिका में हैं। इमाम ने अदालत में यह याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने फिल्म की प्री-स्क्रीनिंग और मुकदमे के समापन तक फिल्म की रिलीज़ को स्थगित करने की मांग की थी। उनका कहना था कि फिल्म के ट्रेलर में उन्हें और अन्य आरोपियों को आतंकवादी के रूप में दिखाया गया है, जबकि उन पर अभी तक कोई आरोप भी नहीं लगा है।

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आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन
इमाम के अधिवक्ता वारिशा फरासत ने तर्क दिया कि ट्रेलर में उनके नाम का उल्लेख और उनकी तस्वीर का उपयोग उनके खिलाफ चल रहे मुकदमे पर नकारात्मक असर डाल सकता है और उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा सकता है। इसके अतिरिक्त, दो अन्य याचिकाकर्ताओं ने भी फिल्म की रिलीज़ को चुनौती दी। एक याचिकाकर्ता साहिल परवेज हैं, जिन्होंने 2020 के दंगों में अपने पिता को खो दिया था, और दूसरे याचिकाकर्ता उमंग हैं, जो दिल्ली विधानसभा चुनावों में स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर खड़े हैं। उमंग ने कहा कि फिल्म की रिलीज़ चुनाव के दौरान आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन होगी।

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वरिष्ठ वकील जयंत मेहता ने क्या कहा?
फिल्म निर्माताओं के अधिवक्ता, वरिष्ठ वकील जयंत मेहता ने कहा कि फिल्म को अभी तक सीबीएफसी से प्रमाणन प्राप्त नहीं हुआ है और जब तक प्रमाणन नहीं मिलता, वे फिल्म की सार्वजनिक स्क्रीनिंग से बचेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि फिल्म एक काल्पनिक और नाटकीय कहानी है और यह घटनाओं का पुनर्निर्माण करने का दावा नहीं करती है।

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याचिकाएं अपरिपक्व
सीबीएफसी ने भी उच्च न्यायालय को बताया कि याचिकाएं अपरिपक्व हैं, क्योंकि फिल्म के लिए प्रमाणपत्र अभी तक जारी नहीं हुआ है। न्यायालय ने सभी दलीलों को सुनने के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि याचिका जल्दबाजी में दायर की गई है, क्योंकि फिल्म अभी सेंसर प्रमाणन की प्रक्रिया से गुजर रही है। अदालत ने इस मामले में आगे कोई आदेश जारी नहीं किया और याचिका का निपटारा कर दिया। इमाम की ओर से यह याचिका अधिवक्ता अहमद इब्राहिम, तालिब मुस्तफा और आयशा जैदी के माध्यम से दायर की गई थी।

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