महेश सिंह
26 नवंबर 2008 के मुंबई आतंकवादी हमलों को भुलाया नहीं जा सकता। मुंबई ही नहीं, देश के इतिहास में वो आतंकी हमला काले धब्बे की तरह है, जब 10 पाकिस्तानी आतंकियों से निपटने में मुंबई पुलिस के साथ ही केंद्रीय एजेंसियों को 60 घंटे का समय लग गया। उस हमले में निर्दोष 166 लोग मारे गए थे। 60 घंटे की घेराबंदी के दौरान 10 आतंकियों ने एक वाहन में यात्रा कर रहे शहर के तीन शीर्ष अधिकारियों सहित पुलिसकर्मियों पर भी घात लगाकर हमला किया। इस हमले में तीन शीर्ष पुलिस अधिकारियों सहित छह पुलिसकर्मी हुतात्मा हो गए। एकमात्र जीवित पुलिसकर्मी( तत्कालीन हेड कांस्टेबल) अरुण जाधव आज भी समझ नहीं पाते कि वे उस खौफनाक घटना में जीवीत कैसे बच गए।
जीवीत बचने पर आश्चर्य
अरुण जाधव उस भयानक रात को याद करते हुए कहते हैं,”मुझे अक्सर आश्चर्य होता है कि मैं उस घटना में जीवित कैसे बच गया? क्या मैं सचमुच भाग्यशाली था? क्या यह कर्म का फल था? क्या यह भगवान की इच्छा थी? मुझे लगता है कि इस बात को मैं कभी नहीं जान पाऊंगा।”
अरुण जाधव को दाहिने हाथ और बाएं कंधे पर लगी गोली
एके-47 से फायरिंग कर रहे दो आतंकियों की गोलियों से घायल होकर तीन कांस्टेबल सीट से नीचे गिर गए थे। इनमें से दो हुतात्मा हो चुके थे और एक मुश्किल से सांस ले रहा था। ये सभी हेड कांस्टेबल अरुण जाधव के ऊपर गिर गए थे। इस फायरिंग में हेड कांस्टेबल अरुण जाधव भी असहाय होकर अपनी सीट से नीचे गिर गए थे। उनके दाहिने हाथ और बाएं कंधे पर गोली लगने से खून बह रहा था।
घायल होकर खिड़की से टकरा गए एटीएस प्रमुख
बीच की सीट पर बैठे शहर के एंटी टेररिस्ट स्क्वाड के प्रभारी सुपर कॉप हेमंत करकरे वाहन की खिड़की से टकरा गए थे और सीने में गोली लगने से वे वीरगति को प्राप्त हो गए थे। उनके साथ ही वाहन में बैठे एक अधिकारी और एक पुलिस निरीक्षक को गोलियों से छलनी हो गए थे। ड्राइवर की सीट पर बैठा शहर के गैंगस्टरों से लोहा लेने के लिए मशहूर एक वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक घायल होकर स्टीयरिंग व्हील पर झुक गया था।
60 घंटे तक चला आतंक का तांडव
यह 26 नवंबर 2008 की रात थी। भारत की वित्तीय राजधानी और स्पप्न नगरी मुंबई विश्व के अब तक के सबसे भयानक आतंकवादी हमलों में से एक की चपेट में थी। 10 आधुनिक और खतरनाक हथियारों से लैस पाकिस्तानी आतंकवादी 26/11 की शाम को समुद्र के रास्ते से मुंबई में घुस आए थे। उसके बाद वे अलग-अलग ग्रुप में बंट गए थे। उन्होंने वाहनों का अपहरण कर लिया था और मुख्य रेलवे स्टेशन, दो लक्जरी होटल, एक यहूदी सांस्कृतिक केंद्र और एक अस्पताल सहित 12 ठिकानों पर हमला किया था। 60 घंटे तक चले आतंक के इस अमानवीय खेल में 166 लोग मारे गए थे।
ऐसे बची मरीजों की जान
हेड कांस्टेबल अरुण जाधव और छह अन्य पुलिसकर्मी सफेद एसयूवी में उन दो बंदूकधारियों को दबोचने के लिए निकले थे, जिन्होंने शहर के मध्य में महिलाओं और बच्चों के अस्पताल पर हमला किया था। लेकिन कर्मचारियों ने सावधानी बरती और मरीजों को बचाने के लिए 367 बिस्तरों वाले इस अस्पताल के वार्डों में ताला लगा दिया था। पुलिस अस्पताल में घुस गई थी, और एक वरिष्ठ अधिकारी ने ऊपरी मंजिल से आ रही गोलियों का जवाब देने के लिए एक राउंड फायरिंग की थी। लेकिन आतंकी इमारत छोड़ चुके थे और वे अस्पताल के पीछे वाली गली में छिप गए थे।
पुलिस की एक गल्ती ने आतंकियों को दिया मौका
दरअस्ल पुलिसकर्मियों को इस बात का अहसास हो गया था कि आगे खतरा हो सकता है। इसलिए तय किया गया कि गाड़ी की हेडलाइट बंद कर दिया जाए और धीरे-धीरे आगे बढ़ा जाए। लेकिन ऊपर की लाइट हेमंत करकरे ऑफ करना भूल गए। इस कारण आतंकवादियों ने तुरंत वाहन पर हमला कर दिया और दो मैगजीन खाली कर दी। उसके बाद वे पुलिस वाहन के पास आकर तीन मृत अधिकारियों को आगे और बीच की सीटों से खींच लिया और सड़क पर डाल दिया। वे बचे हुए तीन हुतात्मा लोगों को बाहर निकालने के लिए पीछे की ओर आए, लेकिन दरवाजा खोलने में असमर्थ रहे। इसके बाद मोहम्मद अजमल आमिर कसाब और इस्माइल खान पीछे के तीन पुलिसकर्मियों को वही छोड़ दिया।वास्तव में, उनमें से एक जीवित था, दूसरा सांस ले रहा था। बाकी दो आदमी हुतात्मा हो चुके थे।
.. और बज उठा मोबाइल का रिंग टोन
अचानक, सन्नाटे को तोड़ते हुए घायल कांस्टेबल योगेश पाटील की जेब में मोबाइल फोन बजने लगा। ऑपरेशन में शामिल होने से पहले वे इसे साइलेंट मोड पर रखना भूल गए थे। कसाब गाड़ी में इधर-उधर देखा और पीछे की ओर कई राउंड फायरिंग की। इसमें अंततः पाटील वीर गति को प्राप्त करते हुए हुतात्मा हो गए।
अरुण जाधव थे एकमात्र जीवित पुलिसकर्मी
अरुण जाधव अब एकमात्र जीवित पुलिसकर्मी बचे थे, जो खून से नहाए हुए थे और लाशों के ढेर के नीचे दबे हुए थे। वे कहते हैं,”अगर कसाब ने अपनी बंदूक थोड़ी और घुमा दी होती तो मैं मर गया होता।” अरुण जाधव, जिन्होंने कई बार मुंबई के दुर्गम इलाकों में अपराधियों से लड़ते हुए उनके दांत खट्टे कर दिए थे, यहां असहाय थे और आतंकियों के सामने होने के बावजूद कुछ नहीं पा रहे थे।
इस बात के सिए अफसोस
अरुण जाधव के दिलोदिमाग में अपने परिवार की यादें उभरने लगी थीं। उन्हें लगा कि उनका अंतिम समय आ गया है। उन्हें लगा,”मैं बहुत जल्द मरने वाला हूं। मैं अपनी पत्नी, अपने बच्चों, अपने माता-पिता को याद कर रहा था।” उन्होंने फर्श पर गिरी अपनी भरी हुई स्वचालित राइफल को उठाने का प्रयास किया, लेकिन उनके घायल हाथ में ताकत नहीं बची थी। उन्हें वाहन में चढ़ने से पहले अपनी 9एमएम पिस्तौल एक सहकर्मी को देने का अफसोस हुआ, “मैं हल्के हथियार से बंदूकधारियों को पीछे से आसानी से मार सकता था।”
और वायरलेस ने जारी किया संदेश
गाड़ी अब बिना किसी दिशा के लापरवाही से चलाई जा रही थी। एक चौराहे पर आतंकियों ने खड़े निर्दोष लोगों पर गोलीबारी की, जिससे और अधिक दहशत फैल गई। इससे पहले पुलिस ने वाहन पर गोलीबारी की थी,जिसमें एक गोली वाहन के पिछले टायर में लगी थी। मौत की गाड़ी का वायरलेस लगातार हो रहे हमलों के के बीच बज उठा, “अभी-अभी पुलिस वैन से कुछ गोलीबारी हुई है!”
मारा गया आतंकी इस्माइल खान
आतंकी करीब 20 मिनट तक तब तक गाड़ी को इधर-उधर घुमाते रहे, जब तक कि पंक्चर हुआ टायर बेकार नहीं हो गया। उसके बाद उन्होंने वाहन छोड़ दिया। एक स्कोडा सेडान को रोका और उसमें से तीन डरे हुए सवारों को बाहर निकालकर वाहन का अपहरण कर लिया। वहां से वे चौपाटी की ओर चल पड़े। रास्ते में एक पुलिस चौकी आ गई। वहां हुई गोलीबारी में इस्माइल और एक पुलिसकर्मी मारा गया, जबकि कसाब जीवित पकड़ा गया। वह पकड़ा गया एकमात्र आतंकी था।
जाधव ने नियंत्रण कक्ष को दी सूचना
इस बीच जाधव वायरलेस रिसीवर उठाने और नियंत्रण कक्ष को संदेश देने में कामयाब हो गए थे। उन्होंने नियंत्रण कक्ष को अपने वाहन में हुतात्मा पुलिसकर्मियों के पार्थिव शरीर के बारे में जानकारी दी और मदद मांगी। जब एम्बुलेंस आई, तो वे बिना किसी सहायता के उसमें चढ़ गए।उसके बाद उन्हें अस्पताल ले जाया गया।
तीन सुपर कॉप हुतात्मा
वाहन में हुतात्मा हो गए लोगों में शहर के तीन सुपर कॉप शामिल थे- शहर के आतंकवाद विरोधी दस्ते(एटीएस) के प्रमुख हेमंत करकरे, अतिरिक्त पुलिस आयुक्त अशोक कामटे, और इंस्पेक्टर विजय सालस्कर। 1988 में मुंबई पुलिस में शामिल होने के बाद अरुण जाधव ने निडरता और वीरता से अपना कर्तव्य निभाया और शहर के गैंगस्टरों को “खत्म” करने के लिए विजय सालस्कर की टीम में शामिल हो गए थे।
डॉक्टर इस बात से थे हैरान
अपने एक कमरे के घर में जाधव की पत्नी और तीन स्कूली बच्चे पूरी रात टीवी पर मुंबई पर हुए हमलों को देखते रहे। वे जाधव और अन्य पुलिसकर्मियों के लिए प्रार्थना करते रहे। अस्पताल मे जाधव ने अगली सुबह अपनी पत्नी से थोड़ी देर बात की। उसके बाद उनकी बांह और कंधे से पांच गोलियां निकालने हेतु उन्हें सर्जरी के लिए ले जाया गया। उनका उपचार कर रहे डॉक्टर इस बात से हैरान थे कि वह कोमा में नहीं गए थे। जाधव पहले भी दो बार गैंगस्टरों का पीछा करते समय गोली लगने से बच गए थे। इस घटना के बाद वे सात महीने में काम पर वापस आ गए थे।
कसाब को फांसी के फंदे तक पहुंचाने में अहम रोल
जाधव कसाब को दोषी ठहराने, जेल में उसकी पहचान करने और पुलिस दस्ते के वाहन में हुए नरसंहार के भयावह विवरण न्यायाधीशों को बताने में भी मुख्य गवाह बने। मई 2010 में कसाब को मौत की सजा दी गई और दो साल बाद पुणे शहर की एक जेल में फांसी दे दी गई।
जाधव को दिया गया वीरता पुरस्कार
जाधव को उनकी बहादुरी के लिए वीरता पुरस्कार मिला और उनकी चोटों के लिए मुआवजा दिया गया। उनकी सबसे बड़ी बेटी को सरकारी नौकरी प्रदान की गई । उनके दो अन्य बच्चों – एक बेटा और बेटी ने इंजीनियरिंग और कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई की है और वे जॉब में हैं।
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