तीन मई को पूरी दुनिया में अंतरराष्ट्रीय पत्रकारिता स्वाधीनता दिवस के तौर पर मनाया जाता है। यह दिवस मूल रूप से पत्रकारों को लिखने की आजादी और पत्रकारिता में किसी भी तरह के हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं करने की प्रतिबद्धता को याद दिलाने का अवसर माना जाता है।
आज के दौर में हमारे देश में राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर पत्रकारिता के दो मापदंडों के बीच कितनी स्वतंत्रता और सुगमता से संवाद संप्रेषण हो पा रहा है। इस बारे में कुछ वरिष्ठ पत्रकारों एवं लेखकों से बातचीत की। प्रस्तुत है बातचीत के चुनिंदा अंश : –
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वरिष्ठ पत्रकार एवं एक अंग्रेजी दैनिक के पूर्व डिप्टी एडिटर प्रतिम रंजन बोस ने कहा कि पत्रकारों की राजनीतिक और आर्थिक स्वतंत्रता लोकतंत्र की मजबूती के लिए बेहद जरूरी है। उन्होंने कहा कि आज के दौर में जब पूरे देश में 1984 के बाद पहली बार किसी सरकार को प्रचंड बहुमत मिली है तब लेखनी की पूरी स्वतंत्रता अपने आप में सवालों के घेरे में रही है। यह पाठक ही तय करें कि पत्रकारिता की कितनी आजादी इस देश में है, लेकिन एक बात स्पष्ट है कि राज्य हो अथवा देश अगर अखबार के हर पन्ने पर अथवा टेलीविजन चैनल पर सरकारी विज्ञापनों की भरमार है तो सरकार के खिलाफ खबरों की स्वतंत्रता अपने आप में सवालों के घेरे में रहेगी।
पत्रकारिता के स्वतंत्रता के बारे में स्थिति स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि समय के साथ सभी बड़े अखबारों में पृष्ठों की संख्या घटी है। अखबारों के डिजिटल संस्करण पढ़ने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर बड़े अखबारों के ई-पेपर को पैसे देकर सब्सक्राइब करने पड़ते हैं। हालांकि राज्य स्तर पर किसी भी बड़े अखबार का ई-पेपर सुगमता से उपलब्ध है। पाठकों को यह तय करना होगा कि राष्ट्रीय स्तर पर और राज्य स्तर पर पत्रकारिता की कितनी स्वतंत्रता मिली हुई है।
पत्रकारिता विज्ञापन आधारित हो गई है : प्रशांत कुमार बसु
अंतरराष्ट्रीय पत्रकारिता स्वतंत्रता दिवस के बारे में बेवाक राय रखते हुए वरिष्ठ पत्रकार प्रशांत कुमार बसु ने कहा कि आज अखबार व्यवसाय का एक प्रमुख जरिया है। पत्रकारिता का कोई भी जरिया हो, विज्ञापन आधारित हो गया है और इसमें स्वतंत्र पत्रकारिता के बारे में सोचना मूर्खता होगी। कई बड़े मीडिया हाउस में सेवा दे चुके प्रशांत कुमार ने कहा कि पत्रकारिता की स्वतंत्रता एक मिथक है। उन्होंने कहा कि जब सरकारी विज्ञापन अथवा प्राइवेट विज्ञापन से आप का अखबार चलेगा, सरकार द्वारा दी गई धनराशि से आपके चैनल चलेंगे तो आप उनके खिलाफ कितना लिख पढ़ सकेंगे।
पत्रकारिता की स्वतंत्रता के नाम पर कुछ भी नहीं लिख सकते : डॉक्टर देवदूत घोष
पत्रकारिता की स्वतंत्रता को लेकर प्रतिष्ठित बांग्ला दैनिक के पूर्व सीनियर एडिटर डॉक्टर देवदूत घोष ठाकुर ने कहा कि पत्रकारिता की स्वाधीनता जैसा वास्तव में कुछ नहीं होता। आजकल तो लोग पत्रकारिता की स्वाधीनता के नाम पर कुछ भी लिखते हैं। माना कि समसामयिक विषयों पर लिखने की स्वाधीनता होनी चाहिए, लेकिन जो मर्जी वह नहीं लिख सकते। लिखने का प्रभाव क्या होगा और उसके दायरे भी सीमित रहना जरूरी है। इसके लिए कोई नियम नहीं है लेकिन पत्रकारों को यह अपने बौद्धिक क्षमता से परखना होगा। उन्होंने कहा कि मीडिया हाउस दो लोगों की उंगलियों पर नाचते हैं- मालिकों के, या सत्ता के। इसीलिए पत्रकारिता की स्वतंत्रता के बारे में हमेशा सवाल खड़े होते रहेंगे।