Student Suicides in India : कोटा नहीं, महाराष्ट्र बन रहा छात्र आत्महत्याओं का केंद्र !

महाराष्ट्र, कोटा को पछाड़कर सबसे अधिक छात्र आत्महत्याओं वाला राज्य बन गया है। रिपोर्ट के अनुसार, छात्रों ने महाराष्ट्र, तमिलनाडु और मध्य प्रदेश में सबसे अधिक आत्महत्याएं की हैं।

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कोमल यादव
भारत में विद्यार्थियों की आत्महत्या (Student suicides in India) की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। हालांकि, छात्रों की आत्महत्या दर कुल आत्महत्या प्रवृत्तियों की दर से अधिक है और अब जनसंख्या (Population) वृद्धि दर को पार कर चुकी है। ‘छात्र आत्महत्या: भारत में फैलती महामारी’ रिपोर्ट, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों पर आधारित है।

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महाराष्ट्र नंबर वन 
महाराष्ट्र (Maharashtra), कोटा (Kota) को पछाड़कर सबसे अधिक छात्र आत्महत्याओं वाला राज्य बन गया है। रिपोर्ट के अनुसार, छात्रों ने महाराष्ट्र, तमिलनाडु और मध्य प्रदेश में सबसे अधिक आत्महत्याएं की हैं। यहां होने वाले छात्र आत्महत्याओं की संख्या देश में होने वाली कुल आत्महत्याओं का एक तिहाई है, जबकि राजस्थान 10वें स्थान पर है, जो कोटा जैसे कोचिंग केंद्रों से जुड़े गहन दबाव को दर्शाता है।
Data Source- Student Suicides: An Epidemic Sweeping India, NCRB Report
हर साल 2 % की वृद्धि
रिपोर्ट में बताया गया है कि छात्र आत्महत्या के मामलों की कम रिपोर्टिंग होती है, लेकिन सच यह है कि आत्महत्या की घटनाओं में प्रति वर्ष दो प्रतिशत की वृद्धि हुई है, वहीं छात्र आत्महत्या के मामलों में चार प्रतिशत की वृद्धि हुई है। 0 से 24 वर्ष की आयु के बच्चों की जनसंख्या पिछले दशक में 58.2 करोड़ से घटकर 58.1 करोड़ हो गई, जबकि छात्र आत्महत्याओं की संख्या 6,654 से 13,044 हो गई।

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विद्यार्थियों में 53% पुरुष छात्र
आईसी3 इंस्टीट्यूट की ओर से संकलित रिपोर्ट में बताया गया है कि 2022 में कुल छात्र आत्महत्या के मामलों में 53 प्रतिशत पुरुष छात्रों ने खुदकुशी की। 2021 और 2022 के बीच, लड़के छात्र की आत्महत्या में 6% की कमी आई जबकि छात्राओं की आत्महत्या में 7 प्रतिश की वृद्धि हुई।
छात्राओं की घटनाएं 61 प्रतिशत बढ़ी
रिपोर्ट के अनुसार पिछले दस वर्षों में छात्रों में 50 % और छात्राओं में 61 % की वृद्धि हुई है। दोनों में पिछले पांच वर्षों में औसत प्रति वर्ष 5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। NCRB के आंकड़े प्राथमिकी रिपोर्ट (एफआईआर) पर आधारित हैं। यह मानना गलत नहीं होगा कि छात्रों की वास्तविक संख्या संभवतः कम रिपोर्ट की गई है। भारतीय दंड संहिता की धारा 309 के तहत आत्महत्या के प्रयास और सहायता प्राप्त आत्महत्या का अपराधीकरण सहित आत्महत्या से जुड़ा सामाजिक कलंक इस कम रिपोर्टिंग का कारण हो सकता है।

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आईसी3 संस्थान के बारे में 
आईसी3 संस्थान (IC3 Institute) एक स्वयंसेवी आधारित संस्था है, जो दुनिया भर में उच्च विद्यालयों को मार्गदर्शन और प्रशिक्षण सामग्री देकर उनके प्रशासकों, शिक्षकों और परामर्शदाताओं को मदद करता है ताकि मजबूत करियर और कॉलेज परामर्श विभागों की स्थापना और रखरखाव हो सके। आईसी3 मूवमेंट के संस्थापक गणेश कोहली ने कहा कि यह रिपोर्ट हमारे शिक्षण संस्थानों में मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटने की तत्काल आवश्यकता की याद दिलाती है।
आत्महत्या के बढने के कारण
मुख्य रूप से माता-पिता, शिक्षकों और समाज से उच्च अपेक्षाएं परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन करने के लिए अत्यधिक तनाव और दबाव का कारण बन सकती हैं, जिसके परिणामस्वरूप मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं जैसे अवसाद, चिंता और द्विध्रुवी विकार होते हैं, जो छात्रों को आत्महत्या करने पर मजबूर करते हैं। इसके अलावा, अकेलापन, वित्तीय चिंताएं, साइबर अपराध और समर्थन की कमी को छात्रों की आत्महत्या दर के मामलों के कारण के रूप में देखा गया है।

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रोकने के उपाय
छात्रों को मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं और परामर्श सेवाओं, सहायता समूहों और मनोरोग सेवाओं जैसे संसाधनों तक पहुंच प्रदान करने से आत्महत्याओं को रोकने में मदद मिल सकती है। मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017 से लेकर टोल फ्री हेल्पलाइन किरण तक सरकार द्वारा की गई विभिन्न पहलों पर बात करना बहुत आसान है, या फिर 2023 की समयबद्ध राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति हो, समस्या क्रियान्वयन भाग में है।
अभिभावक समझे छात्रों के व्यवहार पैटर्न
अब समय आ गया है कि न केवल सरकार बल्कि अभिभावक भी छात्रों के व्यवहार पैटर्न को समझें और इस धारणा से बाहर निकलें कि मानसिक स्वास्थ्य उपचार (Mental Health) समय की मांग है। यह कोई बीमारी नहीं है, यह एक ऐसा कदम है, जिसे हर किसी को आगे आकर राष्ट्रीय संकट बनने से पहले इस समस्या को कम करने का प्रयास करना चाहिए।
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