हिंदू अल्पसंख्यक? सर्वोच्च न्यायालय ने मांगा केंद्र सरकार से जवाब

देश में अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक की मान्यता पर पुनर्विचार की आवश्यकता को लेकर याचिका दायर की गई है। कई राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक होने के बावजूद उन्हें देश में बहुसंख्यक होने के नाते सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं।

171

सर्वोच्च न्यायालय ने देश के नौ राज्यों में हिंदुओं के अल्पसंख्यक होने संबंधी याचिका के मामले में केंद्र सरकार से जवाब दायर करने को कहा है। इस मामले में याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने कहा है कि अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक वर्गीकरण खत्म किया जाए अन्यथा देश के नौ राज्यों में हिंदुओं को भी अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाए।

इस याचिका में अनुरोध किया गया है कि राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम के प्रावधानों को समाप्त किया जाए। जिसके अंतर्गत देश में अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाता है। यह भी अनुरोध किया गया है कि यदि कानून को बरकरार रखा जाता है, तो 9 राज्यों में जहां हिंदू अल्पसंख्यक हैं, उन्हें राज्यस्तर पर अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाना चाहिए, ताकि उन्हें अल्पसंख्यकों दी जानेवाली सुविधाएं मिल सकें।

ये भी पढ़ें – किसान क्या ‘टूल किट’ के अनुसार चल रहे हैं?

आयोग के प्रावधान को चुनौती
सर्वोच्च न्यायालय में एक आवेदन दायर करके राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अधिनियम 1992 के प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिकाएं, जो सभी राज्यों के उच्च न्यायालय में लंबित हैं, को सर्वोच्च न्यायालय में स्थानांतरित करने का अनुरोध किया गया है।

ये भी पढ़ें – ममता बनर्जी इसलिए नहीं बोल रही हैं जय श्रीराम!

भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर अर्जी में कहा गया है कि केंद्र सरकार ने मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और जैन को अल्पसंख्यक अधिनियम की धारा 2(सी) के तहत अल्पसंख्यक घोषित किया है, लेकिन इसने यहूदी, बहाईज् को अल्पसंख्यक घोषित नहीं किया है। यह भी कहा गया है कि देश के 9 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं, लेकिन उन्हें अल्पसंख्यक का लाभ नहीं मिल रहा है।

हिंदुओं को भी मिले लाभ
याचिकाकर्ता ने कहा कि इन राज्यों में अल्पसंख्यक होने के नाते, हिंदुओं को अल्पसंख्यक का लाभ मिलना चाहिए, लेकिन उनका लाभ उन राज्यों के बहुमत को दिया जा रहा है। याचिका में कहा गया है कि संविधान में अल्पसंख्यक शब्द दिया गया है। 2002 में सर्वोच्च न्यायालय के 11 जजों की बेंच ने इसकी व्याख्या करते हुए कहा कि भाषाई और धर्म के आधार पर किसे अल्पसंख्यक माना जाए। याचिकाकर्ता ने कहा कि राज्यों को भाषाई आधार पर मान्यता दी गई है, इसलिए अल्पसंख्यक का दर्जा राज्यवार होना चाहिए न कि देश के स्तर पर।

 

Join Our WhatsApp Community
Get The Latest News!
Don’t miss our top stories and need-to-know news everyday in your inbox.