Supreme Court: तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के गुजारा भत्ते पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा आदेश, जानें न्यायलय ने क्या कहा?

109

Supreme Court: सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने 10 जुलाई (बुधवार) को फैसला सुनाया कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत अपने पति से भरण-पोषण मांगने की हकदार है। न्यायालय ने कहा कि मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 धर्मनिरपेक्ष कानून पर प्रभावी नहीं होगा।

न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने शीर्ष अदालत में एक मुस्लिम व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए मुस्लिम महिला के अधिकार को बरकरार रखते हुए ये फैसले सुनाए। इस याचिका में तेलंगाना उच्च न्यायालय के उस निर्देश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उसने अपनी पूर्व पत्नी को 10,000 रुपये का अंतरिम भरण-पोषण देने का निर्देश दिया था।

यह भी पढ़ें- Worli hit-and-run case: बीएमडब्ल्यू हिट एंड रन मामले में शिवसेना ने राजेश शाह को किया निलंबित, एक महिला की हुई थी मौत

अपील को खारिज
अदालत ने कथित तौर पर यह भी फैसला सुनाया कि अगर धारा 125 सीआरपीसी के तहत किसी भी आवेदन के लंबित रहने के दौरान, कोई मुस्लिम महिला तलाक लेती है, तो वह मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 का सहारा ले सकती है। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने फैसला सुनाते हुए कहा, “हम इस प्रमुख निष्कर्ष के साथ आपराधिक अपील को खारिज कर रहे हैं कि धारा 125 सीआरपीसी सभी महिलाओं पर लागू होगी, न कि केवल विवाहित महिलाओं पर।”

यह भी पढ़ें- Nitish Kumar: इंजीनियर से बातचीत के दौरान नीतीश कुमार ने फिर खोया आपा, बोले – ‘पैर छू लूंगा अगर…’

मामला क्या था?
सुप्रीम कोर्ट का फैसला ‘मोहम्मद अब्दुल समद बनाम तेलंगाना राज्य और अन्य’ मामले से संबंधित है, जिसमें याचिकाकर्ता (पति) ने अपनी पूर्व पत्नी से भरण-पोषण के लिए दावा दायर करने पर शिकायत की थी, जिससे उसने 2017 में तलाक ले लिया था। शुरुआत में, एक पारिवारिक अदालत ने अब्दुल समद को अपनी पूर्व पत्नी को 20,000 रुपये प्रति माह का अंतरिम भरण-पोषण देने का निर्देश दिया था।

यह भी पढ़ें- Worli hit-and-run case: बीएमडब्ल्यू हिट एंड रन मामले में शिवसेना ने राजेश शाह को किया निलंबित, एक महिला की हुई थी मौत

मुस्लिम पर्सनल लॉ का दखल
हालांकि, उन्होंने इस फैसले को तेलंगाना उच्च न्यायालय के समक्ष इस आधार पर चुनौती दी कि दंपति का तलाक मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार हुआ था। याचिकाकर्ता के अनुसार, मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 के मद्देनजर एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला धारा 125 सीआरपीसी के तहत किसी भी गुजारा भत्ता का दावा करने की हकदार नहीं है, बार और बेंच ने रिपोर्ट की। इसके बाद, उच्च न्यायालय ने भरण-पोषण को घटाकर 10,000 रुपये प्रति माह कर दिया। इसके बाद याचिकाकर्ता पति ने उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

यह वीडियो भी देखें-

Join Our WhatsApp Community
Get The Latest News!
Don’t miss our top stories and need-to-know news everyday in your inbox.