सर्वोच्च न्यायालय ने जनसंख्या नियंत्रण को लेकर क़ानून बनाने की मांग करने वाली याचिका खारिज कर दी है। न्यायालय ने कहा कि इस पर लॉ कमीशन या सरकार को नीति बनाने के लिए कहना कोर्ट का काम नहीं है। ये नीतिगत मसला है। ज़रूरत होगी तो सरकार फैसला लेगी।
याचिका में है क्या?
यह याचिका भाजपा नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने दायर की थी। याचिका में कहा गया था कि बढ़ती आबादी के चलते लोगों को बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल पा रहीं हैं। याचिका में कहा गया कि लोगों को साफ हवा, पानी, खाना, स्वास्थ्य और रोजगार हासिल करने का अधिकार सुनिश्चित करने के लिए जनसंख्या नियंत्रण कानून वक्त की जरूरत है। याचिका में कहा गया था कि लॉ कमीशन दूसरे विकसित देशों में जनसंख्या नियंत्रण की नीतियों को देखने के बाद भारत के लिए सुझाव दे।
सरकार ने कही थी ये बात
फरवरी, 2021 में केंद्र सरकार ने कहा था कि परिवार नियोजन के लिए लोगों को मजबूर नहीं कर सकते हैं, क्योंकि इससे जनसंख्या के संदर्भ में विकृति उत्पन्न हो जाएगी। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा है कि वो देश के लोगों पर जबरन परिवार नियोजन थोपने के खिलाफ है। केंद्र सरकार ने कहा कि देश में परिवार कल्याण कार्यक्रम स्वैच्छिक है, जिसमें अपने परिवार के आकार का फैसला दंपति कर सकते हैं और अपनी इच्छानुसार परिवार नियोजन के तरीके अपना सकते हैं। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि निश्चित संख्या में बच्चों को जन्म देने की किसी भी तरह की बाध्यता हानिकारक होगी।
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दिल्ली उच्च न्यायालय ने कर दी थी याचिका खारिज
इससे पहले अश्विनी उपाध्याय ने दिल्ली हाई कोर्ट में यही याचिका दायर की थी, जिसे हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया था। हाई कोर्ट ने कहा था कि जनसंख्या नियंत्रण पर नीति बनाना सरकार का काम है। दिल्ली हाई कोर्ट के इसी फैसले को अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।