Supreme Court: किसी को ‘मियां-टीयां’ या ‘पाकिस्तानी’ कहना अपराध नहीं, जानें सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा क्यों कहा

यह टिप्पणी उस समय आई जब जस्टिस बीवी नागरत्ना और सतीश चंद्र शर्मा की बेंच एक सरकारी कर्मचारी को 'पाकिस्तानी' कहने के आरोपी व्यक्ति के खिलाफ मामला बंद कर रही थी।

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Supreme Court: 04 मार्च (मंगलवार) को एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि किसी को ‘मियां-टीयां’ या ‘पाकिस्तानी’ कहना भले ही गलत हो, लेकिन यह धार्मिक भावनाओं को ठेस (hurting religious sentiments) पहुंचाने का अपराध नहीं है।

यह टिप्पणी उस समय आई जब जस्टिस बीवी नागरत्ना और सतीश चंद्र शर्मा की बेंच एक सरकारी कर्मचारी को ‘पाकिस्तानी’ कहने के आरोपी व्यक्ति के खिलाफ मामला बंद कर रही थी।

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सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “निस्संदेह, दिए गए बयान गलत हैं। हालांकि, यह सूचना देने वाले की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के बराबर नहीं है। इसलिए, हमारा मानना ​​है कि अपीलकर्ता को आईपीसी की धारा 298 के तहत भी आरोपमुक्त किया जाना चाहिए।”

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धर्म का हवाला देकर दुर्व्यवहार का आरोप
शिकायत झारखंड के एक उर्दू अनुवादक और एक कार्यवाहक क्लर्क द्वारा दर्ज कराई गई थी और शिकायत के अनुसार, जब वह सूचना के अधिकार (आरटीआई) आवेदन के बारे में जानकारी देने के लिए आरोपी से मिलने गया, तो आरोपी ने उसके धर्म का हवाला देकर उसके साथ दुर्व्यवहार किया और उसके आधिकारिक कर्तव्यों के निर्वहन को रोकने के लिए आपराधिक बल का इस्तेमाल किया।

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मामले में प्राथमिकी दर्ज
पूरे मामले के कारण भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 298 (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना), 504 (शांति भंग करने के इरादे से अपमान करना) और 353 (सरकारी कर्मचारी को उसके कर्तव्य का निर्वहन करने से रोकने के लिए हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) के तहत व्यक्ति के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई।

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