सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साई बाबा को यूएपीए के आरोपों से बरी किये जाने के बॉम्बे उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगा दी है। जस्टिस एमआर शाह की अध्यक्षता वाली बेंच ने ये आदेश दिया।
कोर्ट ने जीएन साई बाबा को घर में नजरबंद करने की मांग खारिज कर दी। सुनवाई के दौरान जीएन साई बाबा की ओर से पेश वकील ने कहा कि साई बाबा 90 फीसदी दिव्यांग हैं, उन्हें घर पर ही नजरबंद रखा जाए। कोर्ट ने कहा कि आरोपित जमानत याचिका दायर कर सकते हैं।
14 अक्टूबर को जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने जीएन साई बाबा को बरी करने के उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। महाराष्ट्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच के समक्ष इस मामले को मेंशन करते हुए उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाने की मांग की थी। मेहता ने कोर्ट को बताया था कि प्रोफेसर साई बाबा ने जो अपराध किया है वे काफी गंभीर और राष्ट्र विरोधी हैं। उन्होंने कहा था कि आरोपित को गुण-दोषों के आधार पर बरी नहीं किया गया है। केवल अनुमति नहीं मिलने की वजह से बरी किया गया है।
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साई बाबा को 2014 में किया गिरफ्तार
उल्लेखनीय है कि 14 अक्टूबर को बॉम्बे उच्च न्यायालय की नागपुर बेंच ने प्रोफेसर साई बाबा और पांच अन्य आरोपितों को सभी आरोपों से बरी करने का आदेश दिया था। प्रोफेसर साई बाबा पर नक्सलियों से संबंध का आरोप है। उन पर प्रतिबंधित माओवादी संगठन रिवोल्यूशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट से संबंध का आरोप लगा था। प्रोफेसर साई बाबा को 2014 में गिरफ्तार किया गया था।