सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने नागरिकता अधिनियम (Citizenship Act), 1955 के भाग 6A को बरकरार रखा है। न्यायालय की संविधान पीठ ने 4:1 के बहुमत से यह फैसला सुनाया है। नागरिकता अधिनियम का भाग 6A असम (6A Assam) समझौते के तहत असम में बांग्लादेश (Bangladesh) से आने वाले अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों (Illegal Bangladeshi Infiltrators) को लेकर लाया गया कानून था। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि 1971 के बाद बांग्लादेश से असम में प्रवेश करने वाले सभी लोगों को अवैध प्रवासी घोषित किया जाएगा।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने बुधवार (17 अक्टूबर) को यह फैसला सुनाया। न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला ने फैसले से असहमति जताई है।
मुख्य न्यायाधीश ने फैसले में क्या कहा?
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि राज्यों को बाहरी आक्रमण से बचाना सरकार का कर्तव्य है, संविधान के अनुच्छेद 355 के कर्तव्य को अधिकार के रूप में पढ़ने से नागरिकों और न्यायालयों को आपातकालीन शक्तियां मिल जाएंगी जो विनाशकारी होंगी। उन्होंने कहा कि किसी राज्य में विभिन्न जातीय समूहों की मौजूदगी का मतलब अनुच्छेद 29 (1) का उल्लंघन नहीं है। याचिकाकर्ता को यह साबित करना होगा कि एक जातीय समूह दूसरे जातीय समूह की मौजूदगी के कारण अपनी भाषा और संस्कृति की रक्षा करने में सक्षम नहीं है।
सीजेआई ने कहा कि पंजीकरण भारत में नागरिकता देने का वास्तविक मॉडल नहीं है और धारा 6ए को केवल इसलिए असंवैधानिक नहीं माना जा सकता क्योंकि इसमें पंजीकरण की प्रक्रिया निर्धारित नहीं की गई है, इसलिए मैं भी इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि धारा 6ए वैध है।
क्या है नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6A?
नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6ए भारतीय मूल के उन विदेशी शरणार्थियों को भारत की नागरिकता लेने का अधिकार देती है, जो 1 जनवरी 1966 के बाद लेकिन 25 मार्च 1971 से पहले भारत आए थे। यह प्रावधान 1985 में असम समझौते के बाद शामिल किया गया था, जो भारत सरकार और असम आंदोलन के नेताओं के बीच एक समझौता था। दरअसल, असम आंदोलन के नेता बांग्लादेश से अवैध शरणार्थियों को असम में हटाने की मांग कर रहे थे। इसमें 25 मार्च 1971 की कट-ऑफ तारीख जोड़ी गई, जिस दिन बांग्लादेश में स्वतंत्रता के लिए संघर्ष समाप्त हुआ था। असम के कुछ स्थानीय समूहों ने इस प्रावधान को चुनौती दी थी, याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि यह धारा बांग्लादेश से भारत में अवैध रूप से घुसपैठ करने वालों को वैधता प्रदान करती है। याचिकाकर्ताओं ने मांग की थी कि अदालत धारा 6ए को अनुच्छेद 14, 21 और 29 का उल्लंघन मानते हुए इसे असंवैधानिक घोषित करे, लेकिन 5 जजों की पीठ ने 4:1 के बहुमत से इस मांग को खारिज कर दिया।
अवैध बांग्लादेशियों को निकाला जाए बाहर
सर्वोच्च न्यायालय ने नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए को सही ठहराते हुए असम से अवैध प्रवासियों को वापस भेजने की बात भी कही। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि 1 जनवरी 1966 से पहले असम में प्रवेश करने वाले लोगों को नागरिकता दी जाएगी जबकि 1966 से 1971 के बीच आए लोगों को कुछ शर्तों के साथ नागरिकता दी जाएगी।
लेकिन 25 मार्च 1971 या उसके बाद असम में प्रवेश करने वाले अवैध लोगों को नागरिकता नहीं दी जाएगी और उन्हें अवैध प्रवासी घोषित किया जाएगा जिनकी पहचान करके उन्हें वापस भेजा जाना चाहिए। (Assam Accord)
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