हमारे देश में चर्चा बहुत होती है परंतु क्रिया कम होती। ऐसी परिस्थितियों में स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने वैज्ञानिक दृष्टिकोण को समझा और अन्य लोगों को भी समझाया। स्वातंत्र्यवीर सावरकर की 138वीं जयंती पर आयोजित स्वातंत्र्यवीर सावरकर पुरस्कार समारोह में यह विचार वरिष्ठ खगोलशास्त्री और लेखक डॉ.जयंत नारलीकर ने रखा। इस समारोह में शौर्य पुरस्कार से कर्नल बी.संतोष बाबू और समाजसेवा पुरस्कार से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जनकल्याण समिति को पुरस्कृत किया गया।
स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक, मुंबई द्वारा स्वातंत्र्यवीर सावरकर की जयंती समारोह पर दूर दृष्टि (ऑनलाइन) के माध्यम से पुरस्कार सम्मान समारोह आयोजित किया गया। इसमें दो पुरस्कार वितरित किये गए।
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स्वातंत्र्यवीर सावरकर शौर्य पुरस्कार 2021
इस वर्ष का शौर्य पुरस्कार हुतात्मा कर्नल बिकुमल्ला संतोष बाबू को प्रदान किया गया। इस पुरस्कार को वीर पत्नी संतोषी संतोष बाबू ने स्वीकार किया। पुरस्कार में स्वातंत्र्यवीर सावरकर की मूर्ति, सम्मान पत्र और स्मृति चिन्ह 1,01,101/- रुपए की पुरस्कार राशि है।
अपने संबोधन में वीर पत्नी संतोषी संतोष बाबू ने 138वीं जयंती पर स्वातंत्र्यवीर के कार्यों का स्मरण किया। उन्होंने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम पर स्वातंत्र्यवीर द्वारा लिखित ग्रंथ का उल्लेख किया। उन्होंने कर्नल संतोष बाबू की राष्ट्र निष्ठा, अनुशासन प्रिय व्यक्तित्व का उल्लेख किया।
स्वातंत्र्यवीर सावरकर समाजसेवा पुरस्कार 2021
इस वर्ष का समाज सेवा पुरस्कार पुणे की संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जनकल्याण समिति को प्रदान किया गया। इस पुरस्कार के साथ स्वातंत्र्यवीर सावरकर की मूर्ति, सम्मान पत्र और स्मृति चिन्ह और 51,000/- रुपए की पुरस्कार राशि सम्मिलित है। इस अवसर पर संस्था की ओर से अध्यक्ष अश्विनीकुमार उपाध्ये ने स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक का आभार प्रकट किया गया।
सावरकर धर्माभिमानी थे धर्मांध नहीं
इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि खगोलशास्त्री डॉ.जयंत नारलीकर थे। उन्होंने अपने संबोधन में स्वातंत्र्यवीर सावरकर के वैज्ञानिक दृष्टिकोणों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी की आवश्यकता को महसूस किया और विज्ञान को वास्तविकता बनाने का प्रयत्न किया। वे धर्माभिमानी थे पर धर्मांध नहीं थे। विज्ञान के चश्मे से देखते हुए, उन्होंने धार्मिक रीति-रिवाजों पर टिप्पणी की और उनकी आलोचना की। जयंत नारलीकर ने कहा कि आज समाज में विज्ञान के प्रति समर्पण की आवश्यकता है।
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दूर दृष्टि के माध्यम से संपन्न हुआ कार्यक्रम
कोविड-19 के सुरक्षा दिशा निर्देशों का पालन करते हुए स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक ने यह कार्यक्रम दूरदृष्टि (ऑनलाइन) के माध्यम से आयोजित किया था। समारोह में स्वातंत्र्यवीर सावरकर के पौत्र व स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के कार्याध्यक्ष रणजित सावरकर ने वीर सावरकर के विचारों, हिंदुत्व और उनके द्वारा किए गए कार्यों को लोगों के समक्ष रखा। इसके अलावा, ब्रिगेडियर हेमंत महाजन (सेवानिवृत्त), मानद निदेशक, स्वातंत्र्यवीर सावरकर सामरिक केंद्र, ने गलवान घाटी में पिछले वर्ष चीनी सैनिकों द्वारा किए गए हमले की प्रकृति और चीनी आक्रमण के बारे में जानकारी दी। लेफ्टिनेंट जनरल अश्विनी कुमार बख्शी (सेवानिवृत्त) ने शहीद संतोष बाबू के विषय में जानकारी दी। उन्होंने कर्नल संतोष बाबू की शिक्षा, राष्ट्रीय रक्षा अकादमी से जुड़ना और 16वीं बिहार रेजिमेंट में तैनाती के विषय में विस्तृत जानकारी दी।
हिंदी में स्वातंत्र्यवीर के प्रसिद्ध गीत के नृत्याविष्कार का विमोचन
स्वातंत्र्यवीर सावरकर की 138वीं जयंती के अवसर पर स्वातंत्र्यवीर सावरकर के प्रसिद्ध गीत ‘ने मजसि ने परत मातृभूमिला’ के हिंदी संस्करण ‘ले चल मुझको’ पर किये नृत्याविष्कार के वीडियो का विमोचन किया गया। शंकर महादेवन के गाए इस गीत का संगीत निर्देशन वर्षा भावे का है, नृत्य निर्देशन किया है मनीषा जीत ने और नृत्य कलाकार हैं उर्मिला कोठारे। संकल्पना रणजित सावरकर, मंजिरी मराठे, राजेंद्र वराडकर और स्वप्निल सावरकर की है। इसका निर्माण स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक, मुंबई द्वारा किया गया है। कार्यक्रम का सूत्र संचालन स्मारक की कोषाध्यक्ष मंजिरी मराठे ने किया। समारोह के अंत में स्मारक के अध्यक्ष अरुण जोशी ने स्मारक के कार्य और पुरस्कारों की जानकारी दी। उन्होंने अतिथियों का आभार प्रकट किया। समारोह का समापन वंदे मातरम् के साथ हुआ।