Supreme Court: मुख्यमंत्री कोई “राजा” नहीं है, सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तराखंड सरकार को लगाई फटकार

‘हम सामंती युग में नहीं हैं जहां राजा जो कहता है, वही होता है।’ सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के एक फैसले पर यह टिप्पणी की।

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सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने उत्तराखंड (Uttarakhand) के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (Chief Minister Pushkar Singh Dhami) को कड़ी फटकार (Reprimand) लगाई है। यह फटकार राज्य के वन मंत्री (Forest Minister) और अन्य की राय को नजरअंदाज कर एक विवादित आईएफएस अधिकारी को राजाजी टाइगर रिजर्व का निदेशक नियुक्त करने के सीएम के कदम पर दी गई है। जस्टिस बीआर गवई, पीके मिश्रा और केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि सरकार के मुखिया से पुराने दिनों के राजा होने की उम्मीद नहीं की जा सकती और हम सामंती युग में नहीं हैं।

हालांकि, राज्य सरकार ने पीठ को बताया कि नियुक्ति आदेश 3 सितंबर को वापस ले लिया गया था। इस पर जजों ने कहा, “इस देश में पब्लिक ट्रस्ट सिद्धांत जैसा कुछ है। कार्यपालिका के प्रमुखों से पुराने दिनों के राजा होने की उम्मीद नहीं की जा सकती कि वे वही करेंगे जो उन्होंने कहा है… हम सामंती युग में नहीं हैं… सिर्फ इसलिए कि वह मुख्यमंत्री हैं, क्या वह कुछ कर सकते हैं?”

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क्या मुख्यमंत्री कुछ कर सकते हैं?
पीठ ने सार्वजनिक विश्वास के सिद्धांत के महत्व पर जोर दिया। पीठ ने कहा, ‘इस देश में सार्वजनिक विश्वास के सिद्धांत जैसा कुछ है। सार्वजनिक कार्यालयों के प्रमुख अपनी मर्जी से कुछ नहीं कर सकते, जबकि ऐसा प्रावधान है कि उन्हें (अधिकारी को) वहां तैनात नहीं किया जाना चाहिए। इसके बावजूद, ऐसा सिर्फ इसलिए किया गया क्योंकि वह मुख्यमंत्री हैं और वह कुछ भी कर सकते हैं?’

उत्तराखंड सरकार ने क्या कहा?
कोर्ट में बेंच ने सवाल किया कि सीएम को अफसर से इतना खास लगाव क्यों है, जबकि उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई लंबित है। इस पर राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एएनएस नादकर्णी ने कहा कि अफसर को निशाना बनाया जा रहा है। साथ ही उन्होंने इस बात की ओर इशारा किया कि नोटिंग में कहा गया था कि अफसर को राजजी टाइगर रिजर्व में तैनात नहीं किया जाना चाहिए। इस पर कोर्ट ने कहा कि मुख्यमंत्री सिर्फ अनदेखी कर रहे हैं

उत्तराखंड सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एएनएस नादकर्णी ने कहा कि मुख्यमंत्री के पास ऐसी नियुक्तियां करने का विवेकाधिकार है। नादकर्णी ने शीर्ष अदालत से अगली सुनवाई के दौरान विस्तृत स्पष्टीकरण देने को कहा।

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