One Nation One Election: दिल्ली में समिति की बैठक, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में होगी चर्चा

वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर चर्चा चल रही है। आज होने वाली बैठक में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद शामिल होंगे।

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देश में एक साथ चुनाव (Elections) कराने की संभावना पर विचार करने के लिए शनिवार को पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (Former President Ramnath Kovind) की अध्यक्षता में बैठक होगी। इस बैठक में संभावनाओं पर आगे बढ़ने की रूपरेखा तय की जाएगी। साथ ही चुनाव प्रक्रिया (Election Process) से जुड़े लोगों से चर्चा का कार्यक्रम भी तय किया जायेगा।

कोविंद ने 23 सितंबर को अपने हालिया ओडिशा दौरे के दौरान इस मुलाकात की जानकारी दी थी। केंद्र सरकार ने देश में लोकसभा, राज्य विधानसभाओं, स्थानीय निकायों और पंचायतों के चुनाव एक साथ कराने की संभावना पर विचार करने के लिए 2 सितंबर को एक अधिसूचना जारी कर आठ सदस्यीय उच्च स्तरीय समिति का गठन किया था।

अधिसूचना में समिति से एक साथ चुनाव कराने के संबंध में जल्द रिपोर्ट सौंपने का अनुरोध किया गया है। शनिवार को होने वाली बैठक में संभावनाएं तलाशने का पूरा खाका तैयार किया जाएगा।

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‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ समिति का काम क्या है?
एक राष्ट्र एक चुनाव (One Nation One Election) की यह कमेटी लोकसभा, विधानसभाओं, नगर पालिकाओं और पंचायतों के एक साथ चुनाव कराने के मुद्दे पर जांच करेगी। यह कमेटी इस बात पर विचार करेगी कि पूरे देश में एक साथ चुनाव कैसे हो सकते हैं और अगर चुनाव होते हैं तो यह कैसे संभव है। यह भी जांच करेगा और सिफारिश करेगा कि क्या संविधान में संशोधन के लिए राज्यों द्वारा अनुसमर्थन की आवश्यकता होगी। यह समिति त्रिशंकु सदन, अविश्वास प्रस्ताव या दलबदल या एक साथ चुनाव के मुद्दे पर भी विश्लेषण करेगी और संभावित समाधान सुझाएगी।

कमेटी में इन लोगों के नाम शामिल
पूर्व राष्ट्रपति कोविंद की अध्यक्षता वाली इस समिति में गृह मंत्री अमित शाह, राज्यसभा में विपक्ष के पूर्व नेता गुलाम नबी आजाद और वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह शामिल हैं। इस समिति में लोकसभा में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी को भी नामित किया गया था लेकिन उन्होंने इस समिति का सदस्य बनने से इनकार कर दिया। आपको बता दें कि विपक्षी गठबंधन इंडिया ने इस समिति के गठन और इसके उद्देश्य को लेकर सवाल उठाए हैं।

एक सितंबर को मुंबई में हुई गठबंधन की बैठक में सरकार की मंशा पर आश्चर्य जताया गया। कहा गया कि इससे देश के संघीय ढांचे को खतरा होगा जो संविधान की मूल भावना के खिलाफ होगा।

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