गैंगस्टर अबू सलेम की याचिका पर केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला ने सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल जवाब में कहा है कि भारत सरकार की तरफ से पुर्तगाल को दिए गए आश्वासन से देश के अदालतें बंधी नहीं हैं। वह कानून के हिसाब से अपना निर्णय देती है। भल्ला ने यह भी कहा है कि सलेम का प्रत्यर्पण 2005 में हुआ था। उसकी रिहाई पर विचार करने का समय 2030 में आएगा, तब सरकार तय करेगी कि क्या करना है।
अबू सलेम की याचिका पर विचार
भल्ला ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय को अबू सलेम की याचिका पर विचार नहीं करना चाहिए। 12 अप्रैल को सर्वोच्च न्यायालय ने अबू सलेम की याचिका पर केंद्रीय गृह सचिव की ओर से जवाब दाखिल नहीं करने पर एतराज जताया था। न्यायालय ने अंतिम अवसर देते हुए 18 अप्रैल तक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था।
सीबीआई के जवाब को किया नामंजूर
8 मार्च को न्यायालय ने सीबीआई के जवाब को नामंजूर कर दिया था। न्यायालय ने केंद्रीय गृह सचिव को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था। सीबीआई ने कहा था कि सलेम को 25 साल से अधिक सजा न होने का भरोसा भारत सरकार ने पुर्तगाल को दिया था। यह किसी न्यायालय पर लागू नहीं होता है। तब सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि ऐसा रवैया दूसरों के प्रत्यर्पण में समस्या बनेगा।
सलेम ने सर्वोच्च न्यायालय में दायर की याचिका
-गैंगस्टर अबू सलेम ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर कहा है कि पुर्तगाल से प्रत्यर्पण के समय भारत ने वहां की सरकार को आश्वासन दिया था कि किसी मामले में 25 साल से अधिक सज़ा नहीं दी जाएगी। लेकिन मुंबई की टाडा न्यायालय ने उम्रकैद की सजा दी है।
-2 फरवरी को सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि वो अबू सलेम के प्रत्यर्पण के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पुर्तगाल सरकार को दिए गए अंडरटेकिंग और उसकी कस्टडी कब से मानी जाए, इन दोनों विषयों पर जवाब दाखिल करे।
-सुनवाई के दौरान अबू सलेम की ओर से ऋषि मल्होत्रा ने कहा था कि जब पुर्तगाल से उसका प्रत्यर्पण किया गया था उस समय भारत ने वहां की सरकार को आश्वासन दिया था कि किसी भी मामले में 25 साल से अधिक सजा नहीं दी जाएगी। जबकि मुंबई की टाडा अदालत ने उसे उम्रकैद की सजा दी है। इस पर विचार किया जाना चाहिए।
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