UP Politics: उपचुनाव में हार, भाजपा के लिए भूल सुधारने का मौका!

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अमन दुबे

UP Politics: हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) में मिली करारी हार से भाजपा (BJP) अभी उबर नहीं पाई है। फिलहाल पार्टी ने अपनी हार के कारणों का पता लगाने पर मंथन शुरू कर दिया है। इस बीच सात राज्यों की तेरह सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा मात्र दो सीटें जीतने में कामयाब रही है।

इस कारण पीएम मोदी और भाजपा की मुश्किलें और बढ़ गई हैं। अपने अति आत्मविश्वास के कारण बीजेपी 2019 के नतीजे नहीं दोहरा पाई और 2024 के लोकसभा चुनाव में महज 240 सीटों पर सिमट गई। इससे बीजेपी की बेचैनी और बढ़ गई है। भाजपा के लिए यह हार का पता लगाने और भूल सुधारने का मौका भी हो सकता है।

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13 में से मात्र 2 सीटों पर जीत
पश्चिम बंगाल में उपचुनाव में सभी चार सीटों पर मिली हार के बाद भाजपा अब अन्य राज्य़ों में होने वाले उपचुनाव के लिए तैयारी में जुट गई है। भाजपा के दिग्गज नेता व कार्यकर्ताओं को समझाने में लगे हुए हैं। वे किसी भी हालत में आने वाले चुनावों में अपने प्रदर्शन को सुधारने की कोशिश कर रहे हैं। ध्यान देने वाली बात है कि 10 जुलाई को हुए उपचुनाव में 13 सीटों में से भाजपा मात्र दो सीटों पर जीत हासिल कर सकी थी।

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हार बड़ी चिंता
राजनीतिक जानकारों की मानें तो 2019 के चुनाव के बाद पीएम मोदी ओवर कॉन्फिडेंट में आ गए थे। वह महंगाई और बेरोजगारी समेत अहम मुद्दों पर बात करने से कतराने लगे थे। इसका जनता ने करारा जवाब दिया और वोट शेयर 303 से घटकर 240 पर आ गया। इसके बावजूद मोदी की कार्यशैली में कोई खास परिवर्तन देखने को नहीं मिला। लेकिन देश में तेरह सीटों पर हुए उपचुनाव में दो सीटों पर सिमटने के बाद भाजपा और पार्टी के नेताओं की नींद उड़ गई है और उनके माथे पर चिंता की लकीरें देखी जा सकती हैं। ध्यान देने वाली बात यह भी है कि इसी साल तीन राज्यों महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में उपचुनाव में भाजपा की हार उसके लिए सबक और चुनौती दोनों है।

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नई रणनीति जरुरी
आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा को किस तरह से नए रूप में उभरना होगा, नई रणनीति बनानी होगी क्योंकि जैसा कि आज की राजनीति में देखा जा सकता है कि भाजपा अपनी सत्ता से दूर होती जा रही है और हिंदुत्व का अपमान करने वाली कई पार्टियां सत्ता के करीब पहुंचती दिख रही है।

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जीत के लिए मोदी का चेहरा काफी नहीं
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि सिर्फ पीएम मोदी के नाम पर वोट नहीं मिलेंगे। अब पार्टी के नेताओं को जमीनी स्तर पर आकर अपना चेहरा दिखाना होगा। इसके साथ ही भाजपा को नए पूर्णकालिक राष्ट्रीय अध्यक्ष की जरूरत है। मोदी या शाह हमेशा चेहरा नहीं रहेंगे। पार्टी में जमीनी स्तर पर एक अच्छे नेतृत्व की जरूरत है, जो एक अच्छा नेतृत्व दे और चुनौतियों को स्वीकारते हुए पार्टी को फिर से फौलादी मजबूती दे।

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नये नेतृत्व की जरूरत
भाजपा को नए अध्यक्ष के लिए दिसंबर तक इंतजार करना पड़ेगा। नए अध्यक्ष की चुनाव प्रक्रिया शुरू करने के लिए जरूरी सदस्यता अभियान एक अगस्त से शुरू हो जाएगा। ऐसे में करीब तीन महीने बाद होने वाले तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों में सरकार में कई अहम जिम्मेदारियां संभाल रहे जेपी नड्डा के पास संगठन की कमान रहेगी। इस स्थिति में उनके पास संगठन को मजबूत करने और चुनावी तैयारियों की समीक्षा करने के लिए समय की कमी हो सकती है।

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3 राज्यों में बड़ी चुनौती
अगले कुछ महीनों में महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। महाराष्ट्र, हरियाणा में भाजपा और उसके सहयोगी दल सत्ता में हैं। इन दोनों ही राज्यों में लोकसभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं रहा है।

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हरियाणा में कड़ी चुनौती
महाराष्ट्र और हरियाणा में भाजपा ने सत्ता में तो है, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में हार ने भाजपा की टेंशन बढ़ा दी है। भाजपा ने लगातार दो बार हरियाणा विधानसभा में सरकार बनाकर इतिहास रचा है। इस बार उसके सामने यहां तीसरी बार सरकार बनाने की कड़ी चुनौती है।

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महाराष्ट्र को बचाना जरूरी
महाराष्ट्र में भाजपा की सहयोगी पार्टियां एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजीत पवार की एनसीपी हैं। जिनके साथ मिलकर वह विधानसभा चुनाव लड़ने की योजना बना रही है। लोकसभा में एनडीए की तिकड़ी फेल हो गई है और इंडी गठबंधन के अच्छे नतीजों से यूबीटी, एनसीपी और कांग्रेस का मनोबल बढ़ा हुआ है। उन्होंने इसी आधार पर विधानसभा चुनाव लड़ने की योजना बनाई है, जिसके चलते भाजपा के लिए सत्ता में वापसी की राह मुश्किल हो सकती है। भाजपा किसी भी कीमत पर महाराष्ट्र की सत्ता नहीं खोना चाहती है। इसके लिए पार्टी ने तैयारी शुरू कर दी है।

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बदलनी होगी अपनी रणनीति
लोकसभा चुनाव 2024 में झारखंड में भाजपा का प्रदर्शन औसत रहा। गैर आदिवासी इलाकों में भाजपा को अच्छे वोट मिले, लेकिन पार्टी ने आदिवासी बहुल 5 सीटें गंवा दीं। ऐसे में भाजपा को अपनी रणनीति बदलने की जरूरत है। हालांकि भाजपा अपनी पार्टी के कुर्मी नेताओं को भी आगे लाने की योजना बना रही है। चुनाव से पहले कुछ कुर्मी नेताओं को प्रदेश भाजपा में पद दिया जा सकता है। झारखंड में भाजपा-आजसू पार्टी गठबंधन के कारण यह उम्मीद की जा रही थी कि कुर्मी समुदाय का वोट भाजपा उम्मीदवारों को मिलेगा, क्योंकि आजसू की इस समुदाय पर मजबूत पकड़ है।

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आदिवासी और अल्पसंख्यक मतदाताओं पर ध्यान
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि भाजपा विधानसभा चुनाव में पूर्व केंद्रीय मंत्रियों और बड़े आदिवासी नेताओं को मैदान में उतारने जा रही है। इनमें वे नेता भी शामिल हैं, जो लोकसभा चुनाव हार गए थे। इसके साथ ही भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भी चुनाव लड़ेंगे।भाजपा की रणनीति एक बार फिर उन्हें उभरने में मदद करेगी।

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