देश के तीन राज्यों उत्तर प्रदेश, पंजाब और उत्तराखंड में 2022 के शुरुआती महीनों में ही विधानसभा चुनाव होने हैं। इनमें दो बड़े और ज्यादा महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश तथा पंजाब भी शामिल हैं। वर्तमान में उत्तर प्रदेश में जहां भारतीय जनता पार्टी की सरकार और योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री हैं, वहीं पंजाब में कांग्रेस की सरकार है तथा पार्टी के वरिष्ठ नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह मुख्यमंत्री हैं।
उत्तर प्रदेश में 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को 312 सीटों पर जीत हुई थी। हालांकि कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी ने भी चुनाव प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ी थी, लेकिन जनादेश भाजपा को ही मिला था। इस बार उस जीत को दोहराना भारतीय जनता पार्टी के लिए बहुत बड़ी चुनौती है।
चुनौतियों से निपटने की कोशिश
भारतीय जनता पार्टी इस बात को समझ रही है और इस चुनौती का सामना करने के लिए उसकी बहुत पहले से ही कोशिश जारी है। इसी कड़ी में हाल ही में कांग्रेस नेता जितिन प्रसाद को भाजपा में शामिल किया गया है। उनके पार्टी में आने के बाद ब्राह्मण समुदाय पर पार्टी की पकड़ मजबूत हो सकती है। योगी सरकार पर प्रदेश में ब्राह्मणों की उपेक्षा का आरोप लगता रहा है। फिलहाल जितिन प्रसाद को पार्टी में शामिल कर भाजपा ने इस कमी को पूरा करने की कोशिश की है। इसके साथ ही उन्हें मंत्री बनाने की भी चर्चा चरम पर है।
योगी का कोई विकल्प नहीं
इस बीच सीएम योगी आदित्यनाथ के लिए भी अशुभ खबरें आ रही थीं, लेकिन उत्तर प्रदेश में योगी का कोई विकल्प भाजपा के पास नहीं दिख रहा है। सीएम दो दिन तक दिल्ली में रहकर पीएम मोदी से लेकर, केंद्रीय मंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मिलने के बाद यूपी लौट आए हैं और पूरे आत्मविश्वास के साथ चुनाव की तैयारी में जुट गए हैं।
भाजपा की जीत का इतिहास
2014 का लोकसभा हो, या 2017 का विधानसभा चुनाव हो, गैर यादव ओबीसी का जातीय आधार रखनेवाले दलों ने भाजपा की राह आसान की थी। भाजपा फिर उसी फॉर्मूले को दोहराना चाह रही है। इसके लिए यूपी में पार्टी की जातीय इंजीनियरिंग चल रही है। इसी क्रम में कैबिनेट में कुछ नए चेहरों को शामिल कर जातीय समीकरणों को साधने की कोशिश जा सकती है।
ये हैं चुनौतियां
भाजपा यूपी में 2022 की चुनावी लड़ाई जीतना चाहती है और वो भी बड़े बहुमत से लेकिन इस राह में चुनौतियां काफी हैं। हाल ही में हुए पंचायत चुनाव में जो परिणाम आए, वे भाजपा के लिए सबक लेने जैसा है। इस चुनाव में अयोध्या तक में पार्टी का प्रदर्शन संतोषजनक नहीं रहा। इसके साथ ही कोरोना की दूसरी लहर से निपटने में जनता की कसौटी पर सरकार का खरा नहीं उतरना, पश्चिमी यूपी में किसानों का विरोध और पश्चिम बंगाल में पीएम मोदी की इतनी मेहनत के बावजूद मनचाही सफलता का नहीं मिलना जैसे कई ऐसे मुद्दे हैं, जो भाजपा की परेशानी के कारण बन सकते हैं। भाजपा का शीर्ष नेतृत्व इस बात को अच्छी तरह समझती है, इसलिए वह डैमेज कंट्रोल की पूरी कोशिश कर रही है।
सोशल इंजीनियरिंग जरुरी
चुनाव के मद्देनजर पार्टी का जोर सोशल इंजीनियरिंग पर विशेष रुप से है। भाजपा से नाराज चल रहे समुदायों और उनके नेताओं को मनाने का प्रयास तेज हो गया है। बता दें कि 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा नेतृत्व वाले गठबंधन को 325 सीटों पर बंपर जीत हासिल हुई थी।
ओबीसी मतदाता महत्वपूर्ण
इस जीत में ओबीसी वोटर, जिनकी तादाद 41.5 प्रतिशत है, उनकी सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। गौर करने वाली बात है कि इस प्रदेश में ओबीसी का 145 सीटों पर खासा प्रभाव है। इस लिहाज से कुर्मी समाज के स्वतंत्र देव सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है, जबकि मौर्य समाज के लिए उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य से लेकर स्वामी प्रसाद मौर्य तक सरकार में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। इसके साथ ही सरकार में ओबीसी मंत्रियों का बड़ा प्रतिनिधित्व भी है। यानी भाजपा में ओबीसी वोटरों पर सीधा निशाना है। इसके साथ ही जितिन प्रसाद को पार्टी में शामिल कर ब्राह्मण समाज को भी साधने की कोशिश की जा रही है।
दलित को साधने की जुगत
इस बार भाजपा दलित मतदाताओं को भी साधने में जुटी है। दलित मतदाता यहां 100 सीटों पर जीत-हार का फैसला करने में अहम भूमिका निभाते हैं। यूपी में अपना दल(एस) और निषाद पार्टी भाजपा की सहयोगी पार्टियां हैं। भाजपा बहराइच से बलिया तक प्रभाव रखने वाले राजभर समुदाय को साधने के साथ ही योगी से रुठे ओपी राजभर को भी वापस लाने का प्रयास कर रही थी, लेकिन इस प्रयास को झटका लगने की बात सामने आई है। राजभर ने कह दिया है कि डूबती नैया की सवारी वो नहीं करेंगे।
भाजपा को मिलते रहे हैं सवर्णों के वोट
उत्तर प्रदेश में ज्यादातर सवर्ण मतदाता भाजपा को वोट देते रहे हैं। 20 प्रतिशत जनसंख्या वाला ब्राह्मण जहां 60 सीटों पर जीत-हार के फैसले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, वहीं 15 प्रतिशत ठाकुर वोट कम से कम 85 सीटों के परिणाम को प्रभावित करता है। इन कारणों से भाजपा को सवर्णो को साध कर रखना जरुरी है।
पीएम के नाम पर जातीय समीकरण ध्वस्त
पिछली बार पीएम के नाम पर सभी जातीय समीकरण ध्वस्त हो गए थे और ज्यादा से ज्यादा मत भाजपा की झोली में आए थे। इस बार भी पीएम मोदी का जादू बरकरार रहने की उम्मीद है।
भाजपा अकेली हिंदुत्वादी पार्टी
भाजपा वर्तमान में खुले तौर पर देश में सबसे बड़ी हिंदुत्वादी पार्टी है। सीएम योगी इसके सबसे बड़े मुखर और आक्रामक चेहरा हैं। इसलिए पार्टी हर चुनाव में योगी का उपयोग करती है। हालांकि इस बार पश्चिम बंगाल के साथ ही यूपी के पंचायत चुनाव में भी पार्टी के प्रदर्शन फीका रहने के बाद पार्टी को सबक लेने की जरुरत है। वैसे भी उत्तर प्रदेश को देश की सत्ता की मास्टर की कहा जाता है। इस बात को भाजपा भी अच्छी तरह समझती है।
बसपा सबसे बड़ी चुनौती
जहां भारतीय जनता पार्टी 2022 चुनाव में जीत हासिल करने के लिए अभी से पूरी ताकत झोंक रही है, वहीं समाजवादी पार्टी भी पंचायत चुनावों में मिली जीत से काफी उत्साहित है। वह छोटे दलों को अपने साथ लाने की रणनीति पर काम कर रही है। वह अपना दल-एस पर नजर रखे हुए है।
इन पार्टियों से भी रहना होगा सावधान
सपा के साथ ही बसपा भी पूरी ताकत के साथ 2022 के चुनाव में मैदान में उतरने की तैयारी में है। साथ ही कांग्रेस की भी कोशिश है कि वह प्रियंका गांधी की वह लोकप्रियता बरकरार रखे। अगर 2022 में भी कांग्रेस का प्रदर्शन नहीं सुधरा तो उनकी छवि को झटका लग सकता है। हालांकि गठबंधन को लेकर अभी तक उसकी रणनीति तय नहीं है। इनके साथ ही एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी नौ दलों के साथ भागीदारी संकल्प मोर्चा का गठन कर यूपी में सत्ता हासिल करने का सपना देख रहे हैं।
2017 की ये थी स्थिति
यूपी में 2017 में 7 फरवरी से 8 मार्च तक सात चरणों में मतदान कराए गए थे। इसमें मतदान का प्रतिशत 61 प्रतिशत रहा था। भाजपा ने 312 सीटों पर जीत प्राप्त की थी। उसने तीन चौथाई बहुमत प्राप्त किया था। सत्तारुढ़ समाजवादी पार्टी गठबंधन को 54 और बहुजन समाज पार्टी को 19 सीटों पर जीत मिली थी। इससे पहले के चुनाव में सपा की सरकार थी और अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे। 2017 में 19 मार्च को योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। प्रदेश में कुल विधानसभा सीटों की संख्या 403 है, जबकि सरकार बनाने के लिए जादुई आंकड़ा 202 है।