Uttar Pradesh: प्रयागराज (Prayagraj) में आयोजित बिजली पंचायत (Electricity Panchayat) में मुख्यमंत्री (Chief Minister) से अपील की गई कि आम उपभोक्ताओं और किसानों के हित में पावर कॉरपोरेशन के बिजली के निजीकरण के प्रस्ताव को वापस लिया जाए।
ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (एआईपीईएफ) के चेयरमैन और संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने कहा कि कॉरपोरेशन प्रबंधन 05 नवंबर को हाईकोर्ट द्वारा दिए गए आदेश के बाद समस्याओं के समाधान के लिए हाईकोर्ट के फैसले का पालन नहीं कर रहा है।
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पावर कारपोरेशन प्रबंधन
हजारों की संख्या में बिजली कर्मचारियों, इंजीनियरों और उपभोक्ताओं ने भाग लिया। बिजली पंचायत में संयुक्त किसान मोर्चा और अखिल भारतीय किसान सभा के लोग बड़ी संख्या में आए। प्रयागराज बिजली पंचायत को मुख्य रूप से शैलेन्द्र दुबे, जितेन्द्र सिंह गुर्जर, महेन्द्र राय, पीके दीक्षित, सुहैल आबिद, संयुक्त किसान मोर्चा की एकादशी यादव ने संबोधित किया तथा एटक, इंटक, सीटू, एआईसीसीटीयू व अन्य अखिल भारतीय ट्रेड यूनियनों के पदाधिकारियों ने समर्थन दिया, ऐसा वी के गुप्ता ने बताया। संघर्ष समिति ने कहा कि निजीकरण से होने वाली समस्याओं पर बार-बार अनुरोध के बावजूद पावर कारपोरेशन प्रबंधन ने संघर्ष समिति से आज तक कोई वार्ता नहीं की है।
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निजीकरण का विफल प्रयोग
पावर कारपोरेशन प्रबंधन निजीकरण की इतनी जल्दी में है कि उसे हाईकोर्ट के आदेश की भी परवाह नहीं है। संघर्ष समिति ने कहा कि उड़ीसा, औरंगाबाद, नागपुर, जलगांव, समस्तीपुर, गया, भागलपुर, उज्जैन, सागर, ग्वालियर, आगरा व ग्रेटर नोएडा में निजीकरण का प्रयोग पूरी तरह विफल हो चुका है। इसलिए देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में निजीकरण के इस विफल प्रयोग को लागू करना उपभोक्ताओं व कर्मचारियों के हित में नहीं होगा। दुबे ने कहा कि सरकारी क्षेत्र की कंपनी के लिए बिजली एक सेवा है जबकि निजी घरानों के लिए यह व्यापार है। यूपी की सरकारी बिजली कंपनियां घाटे में रहकर किसानों और आम घरेलू उपभोक्ताओं को बिजली उपलब्ध करा रही हैं।
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1500-1600 करोड़ रुपये के आरक्षित मूल्य
वहीं, निजी बिजली कंपनियां मुनाफे के लिए काम करती हैं। सरकारी क्षेत्र में किसानों को मुफ्त बिजली मिलती है। निजीकरण होते ही दरों में असामान्य वृद्धि होगी। जितेंद्र सिंह गुर्जर ने कहा कि लाखों-करोड़ों रुपये की बिजली परिसंपत्तियों को कौड़ियों के भाव बेचने की साजिश है। बिजली के निजीकरण से किसानों और आम उपभोक्ताओं की कमर टूट जाएगी। बिजली निगमों की लाखों-करोड़ों रुपये की परिसंपत्तियों का मूल्यांकन किए बिना ही उन्हें 1500-1600 करोड़ रुपये के आरक्षित मूल्य पर बेचने का दस्तावेज तैयार कर लिया गया है, जो किसी भी तरह से प्रदेश के हित में नहीं है।
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