Landslide: वायनाड हादसे से देश के ‘इन’ दो प्रदेशों को लेनी चाहिए सीख, ताकि बचाई जा सके हजारों जिंदगियां

वायनाड में घटते जंगलों पर 2022 के एक अध्ययन से पता चला कि 1950 और 2018 के बीच जिले का 62 प्रतिशत हरित क्षेत्र गायब हो गया, जबकि वृक्षारोपण क्षेत्र में लगभग 1,800 प्रतिशत की वृद्धि हुई।

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हरिगोविंद विश्वकर्मा
Landslide: केरल के वायनाड जिले में प्राकृतिक आपदा कोई नई बात नहीं है। पिछले कुछ वर्षों से भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में कुछ ज्यादा ही उथल-पुथल मची हुई है। आए दिन पृथ्वी पर कहीं न कही बाढ़, भूकंप, सुनामी या फिर महामारी का प्रकोप सुनने को मिलता रहता है। इन प्राकृतिक आपदाओं की वजह से इस पृथ्वी पर मानव ही नहीं समस्त जीवों के लिए जीवन-यापन करना मुश्किल लगने लगा है। कह सकते हैं कि विकास के नाम पर मानव अपनी बेवकूफियों और पर्यावरण के प्रति अपनी असंवेदनशीलता के कारण अपना जीवन खतरे में डालता चला जा रहा है। सबसे गंभीर खतरा हमारा आने वाली पीढ़ी को झेलना पड़ेगा।

भारी बारिश ने ढाया कहर
वायनाड दरअसल, पहाड़ी ज़िला है, जो पश्चिमी घाट में तहत आता है। यहां 29 जुलाई की देर रात अप्रत्याशित रूप से हुई भारी से भी भारी बारिश हुई, जिसे 34 सेंटीमीटर तक नापा गया। इसके कारण बाढ़ के कारण मुंडक्कई और चूरलमाला के बीच इरुवाझिनजीपुजा नदी पर बना पुल टूट गया और लैंडस्लाइड हो गया। अचानक तेज आवाज के साथ चट्टानें एवं जमीन धंसने लगी और मलबा गिरने लगा। इसकी चपेट में मुंडक्कई, चूरलमाला, अट्टामाला और नूलपुझा जैसे क्षेत्र आ गए। इसमें घर, पुल, सड़कें और गाड़ियां बह गईं। बड़ी संख्या में लोगों की मौत हो गई और कई लापता हैं।

प्राकृतिक रूप से बहुत ही संवेदनशील क्षेत्र
केरल वन अनुसंधान संस्थान (केएफ़आरआई) के वैज्ञानिक डॉ टीवी संजीव नक्शे की मदद से बताते हैं, “यह जनपद प्राकृतिक रूप से बहुत ही संवेदनशील स्थलों की श्रेणी में रखा गया है। इसके बावजूद चूरलमाला कस्बे से 4.65 किलोमीटर और मुंडक्कई कस्बे से 5.9 किलोमीटर दूर क्षेत्र में बड़े पैमाने पर खनन हो रहा है। दरअसल, खदानों में विस्फोट से कंपन्न पैदा होता है, जिसका असर ग्रेनाइट के ज़रिए दूर तक विस्तारित होता है। ये पूरा क्षेत्र पहाड़ी और बहुत अधिक संवेदनशील है। इस क्षेत्र में वनस्पति यानी पेड़ पौधे चीज़ सामान्य हैं। उन्हीं पर प्रकृति का दारोमदार रहता है।”

हर साल आते हैं 25 हजार विदेशी पर्यटक
डॉ टीवी संजीव आगे बताते हैं, “कुछ साल पहले केरल सरकार द्वारा बनाया गया एक नया क़ानून बागान वाले एक हिस्से का इस्तेमाल अन्य गतिविधियों के लिए करने की इजाज़त देता है। जिसके परिणाम स्वरूप रबर बागान मालिकों का ध्यान पर्यटन के क्षेत्र की तरफ बढ़ गया, क्योंकि यहां के खूबसूरत प्रकृतिक नजारे को देखने के लिए हर साल 25 हजार विदेशी पर्यटकों समेत सवा लाख सैलानी आते हैं। पर्यटकों के ठहरने के लिए बड़ी इमारतों का निर्माण किया गया। इसके लिए जंगल काटे गए और उबड़-खाबड़ जमीन को पाटकर समतल कर दिया गया।

62 प्रतिशत हरित क्षेत्र गायब
वायनाड में घटते जंगलों पर 2022 के एक अध्ययन से पता चला कि 1950 और 2018 के बीच जिले का 62 प्रतिशत हरित क्षेत्र गायब हो गया, जबकि वृक्षारोपण क्षेत्र में लगभग 1,800 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एनवायर्नमेंटल रिसर्च एंड पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित अध्ययन से संकेत मिलता है कि 1950 के दशक तक वायनाड के कुल क्षेत्र का लगभग 85 प्रतिशत हिस्सा वन क्षेत्र के अंतर्गत था। अब, यह क्षेत्र अपने व्यापक रबर बागानों के लिए जाना जाता है। भूस्खलन की तीव्रता रबर के पेड़ों के कारण बढ़ी, जो वृक्षारोपण पूर्व समय के घने वन क्षेत्र की तुलना में मिट्टी को पकड़ने में कम प्रभावी हैं।

बिना सोचे-समझे निर्माण जारी है निर्माण कार्य
संवेदनशील क्षेत्रों में बिना सोचे-समझे किए गए निर्माण ने देश भर में, विशेषकर पहाड़ी और पर्वतीय क्षेत्रों में ऐसी आपदाओं को तबाही के लिए आमंत्रित कर रहा है। विशेषज्ञों ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि केरल में सड़कों और पुलियों के व्यापक निर्माण में वर्तमान वर्षा पैटर्न और तीव्रता को ध्यान में नहीं रखा गया है, बल्कि यह पुराने आंकड़ों पर निर्भर है। आकस्मिक बाढ़ को रोकने के लिए निर्माण में नए जोखिम कारकों पर विचार करने की आवश्यकता है, क्योंकि कई संरचनाएं नदी के प्रवाह को समायोजित करने में विफल रहती हैं, जिससे महत्वपूर्ण विनाश होता है। अवैज्ञानिक निर्माण पद्धतियां वर्तमान विनाश का एक प्रमुख कारण हैं।

राज्य सरकार की लापरवाही
इसरो प्रमुख रहे डॉ के कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाले इसरो के उच्च स्तरीय वर्किंग ग्रुप ने अपनी एक रिपोर्ट में देश के 31 जिलों को भूस्खलन से सबसे ज़्यादा प्रभातित घोषित किया था। उसमें वायनाड का भी नाम था।  पर्यावरण विशेषज्ञ माधव गाडगिल की अध्यक्षता वाली वेस्टर्न घाट्स इकोलॉजी एक्सपर्ट पैनल ने जिस जगह पर हादसा हुआ, उसे अति संवेदनशील करार दिया था। लेकिन राज्य सरकार ने माधव गाडगिल पैनल के सुझाव को नज़र अंदाज किया।

घने जंगल और पहाड़ इस जिले की खूबसरती
कभी वायनाड हरे-भरे पश्चिमी घाट में एक रमणीय हिल स्टेशन हुआ करता था, जो अपने विशाल चाय बागानों के लिए जाना जाता था। वहां बाहर से आने वालों का हमेशा लोगों की गर्मजोशी और जिंदादिली से स्वागत किया जाता था। वायनाड काबिनी और चालियार जैसी नदियों का उद्गम स्थल तो है ही जिला घने जंगलों से घिरा हुआ करत था। घने जंगल और पहाड़ इस जिले की खूबसरती थे। यह विभिन्न जैविक अभ्यारण्यों, वन्यजीव अभयारण्यों और राष्ट्रीय उद्यानों का भी घर था।

22 हजार की आबादी
लैंडस्लाइड से करीब 22 हजार की आबादी वाले 4 गांव सिर्फ 4 घंटे में पूरी तरह तबाह हो गए। घर के घर मलबे के नीच दफन हो गए और सैकड़ों लोग मलबे में दब गए। आलम यह था कि जो रात में सोया था, उसे उठने तक का मौका नहीं मिला और सुबह मलबे के नीचे दबा हुआ मिला। इस कुदरती कहर ने इन गांवों की खूबसूरती को उजाड़कर निर्जन कर दिया।

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महाराष्ट्र और गोवा को लेना चाहिए सबक
कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि जो इलाक़े वेस्टर्न के इकोलॉजिकली संवेदनशील श्रेणी में आते हैं, वहां की सरकारों को पर्यावरण विशेषज्ञों की सलाह और सिफ़ारिशों पर विशेष गौर करते हुए विकास संबंधी परियोजनाओं को आगे बढ़ाना चाहिए। ख़ासकर महाराष्ट्र और गोवा जैसे राज्यों को वायनाड हादसे से सीख लेनी होगी।

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