Fundamentalists: वक्फ कानून के खिलाफ हिंसक विरोध प्रदर्शन के बीच पश्चिम बंगाल (West Bengal) में हिंसा प्रभावित (Violence Hit) इलाकों से बड़ी संख्या में लोग अपने घर छोड़ रहे हैं। मुर्शिदाबाद (Murshidabad), उत्तर 24 परगना (North 24 Parganas), हुगली (Hooghly) और मालदा (Malda) जिलों में वक्फ अधिनियम के खिलाफ हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए। वाहनों को जला दिया गया, दुकानों और घरों में तोड़फोड़ और लूटपाट की गई। अब तक 3 लोगों की मौत हो चुकी है। 15 पुलिसकर्मी घायल हो गये हैं। 200 लोगों को गिरफ्तार किया गया है।
भाजपा सांसद ज्योतिर्मय सिंह महतो ने 14 अप्रैल को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर कहा कि बंगाल के सीमावर्ती जिलों को अफस्पा कानून के तहत अशांत क्षेत्र घोषित किया जाना चाहिए। महतो ने बंगाल में हिंदू पलायन की वर्तमान स्थिति की तुलना 1990 के दशक में कश्मीरी पंडितों के पलायन से की। भाजपा नेता प्रदीप भंडारी ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर राज्य में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा के लिए जिम्मेदार होने का आरोप लगाया।
हिन्दू खतरे में है!
दो दिनों की हिंसा के बाद 14 अप्रैल को पुलिस और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल के जवानों ने धुलियान, शमशेरगंज और सुती इलाकों में गश्त शुरू कर दी। इसके कारण सभी सड़कें सुनसान हो गईं, दुकानें बंद हो गईं। केंद्र सरकार ने हिंसा प्रभावित इलाकों में 1,600 जवान तैनात किए हैं। इसमें 300 बीएसएफ जवान शामिल हैं। कुल 21 टीमें तैनात की गई हैं। हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में इंटरनेट पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है। बी.एन.एस. की धारा 163 भी लागू होती है। ममता बनर्जी ने कहा है कि राज्य में वक्फ अधिनियम लागू नहीं किया जाएगा।
मुसलमानों के निशाने पर दलित और पिछड़े
वास्तव में कट्टरपंथियों के निशाने पर ज्यादातर मामलों में दलित और पिछड़े वर्ग के ही हिंदू है। ताजा मामला पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद का देखें तो इसमें तीन लोगों की मौत हो गई। इनमें मृतकों में दो दास परिवार के पिता-पुत्र शामिल हैं। मामले में 60 वर्षीय हरगोबिंद दास और उनके 45 वर्षीय बेटे चंदन दास को घर में घुसकर बुरी तरह घायल कर दिया। अस्पताल ले जाते समय उनकी मौत हो गई।
यहां तक कि हिंसा के दौरान मुर्शिदाबाद में करीब 200 जिन हिंदुओं के घर जलाए गए। इनमें भी ज्यादातर दलित और पिछड़े वर्ग के हिंदू शामिल हैं। हालांकि अभी तक इस बारे में पुख्ता आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। लेकिन स्थानीय रिपोर्ट के अनुसार प्रभावितों में ज्यादातर दलित और पिछड़े हिंदू ही हैं।
पश्चिम बंगाल ही नहीं, देश के अन्य भागों में कट्टर मुसलमानों के निशाने पर ज्यादार घटनाओं में दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग के हिंदू ही शामिल होते हैं। सवर्णों के प्रभाव और पहुंच के कारण कट्टरपंथी निशाना बनाने से हिचकते हैं। दलित, आदिवासी और पिछड़ों को निशाना बनाना उनके लिए आसान होता है।
जम्मू-कश्मीर में भी आतंकी जिन बाहरी लोगों को निशाना बनाते हैं, उनमें दलित और पिछड़े वर्ग के हिंदू ही शामिल होते हैं। मजदूरी और अन्य तरह के छोटे-मोटे काम करने गए लोगों को निशाना बनाना उनके लिए आसान और सुरक्षित होता है। जबकि सवर्ण और प्रभावशाली परिवारों को टार्गेट करना उनके लिए मुश्किल और असुरक्षित होता है।
भारत ही नहीं पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी ज्यादातर मामलों में यही देखा जाता है कि कट्टरपंथी दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग के हिंदुओं को ज्यादा टार्गेट करते हैं। बांग्लादेश में भी पिछले छह महीने में जिन लोगों के साथ हिंसा और यौनाचार किया गया है, उनमें ज्यादातर लोग ऐसे ही हैं। हालांकि इस तरह के आंकड़े न बांग्लादेश के उपलब्ध हैं और नही पाकिस्तान के। लेकिन उनके नाम और सरनेम देखने से ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि पीड़ितों में ज्यादातर लोग और परिवार दलित तथा पिछड़े वर्ग के ही हैं।
हिंदू-मुस्लिम संबंधों पर डॉ आंबेडर की राय
संविधान के रचयिता डॉ. भीमराव आंबेडकर हिंदू-मुस्लिम एकता को स्वीकार नहीं करते थे, जिसे अक्सर राष्ट्रवादी नेताओं द्वारा बढ़ावा दिया जाता था। पाकिस्तान या भारत के विभाजन में, उन्होंने तर्क दिया कि हिंदू-मुस्लिम संबंध बहुत ही विरोधाभासी थे, और संघर्ष केवल राजनीतिक ही नहीं बल्कि सामाजिक और धार्मिक भी था।
उनका मानना था कि हिंदुओं और मुसलमानों के बीच मतभेद उनके मौलिक धार्मिक विश्वासों और ऐतिहासिक अनुभवों के कारण अपूरणीय थे। उन्होंने लिखा: “इस्लाम का भाईचारा मनुष्य का सार्वभौमिक भाईचारा नहीं है। यह मुसलमानों का केवल मुसलमानों के लिए भाईचारा है।”
मुस्लिम समाज पर डॉ आंबेडकर के विचार
डॉ आंबेडकर हिंदू धर्म में जाति व्यवस्था के मुखर आलोचक थे, उन्होंने मुस्लिम समाज के भीतर सामाजिक मुद्दों की भी आलोचना की। उन्होंने कहा कि मुसलमानों में भी जाति और सामाजिक वर्गीकर मौजूद है। पाकिस्तान या भारत का विभाजन में उन्होंने लिखा:“इस्लाम भाईचारे की बात करता है। हर कोई यह अनुमान लगाता है कि इस्लाम को गुलामी और जाति से मुक्त होना चाहिए। गुलामी खत्म हो गई है, लेकिन मुसलमानों में जाति बनी हुई है।”
पाकिस्तान की मांग पर राय
अंबेडकर ने पाकिस्तान को एक अलग मुस्लिम राज्य के रूप में विचार का समर्थन किया, इसलिए नहीं कि वे भारत को विभाजित करना चाहते थे, बल्कि इसलिए कि उनका मानना था कि हिंदुओं और मुसलमानों को एक देश में सह-अस्तित्व के लिए मजबूर करना निरंतर संघर्ष को जन्म देगा। पाकिस्तान या भारत का विभाजन में, उन्होंने लिखा:
“हिंदू-मुस्लिम एकता की इस विफलता का वास्तविक स्पष्टीकरण इस तथ्य में निहित है कि मुसलमान यह नहीं मानेंगे कि हिंदू उनके सगे-संबंधी हैं।”
अंबेडकर ने तर्क दिया कि मुस्लिम लीग की पाकिस्तान की मांग इस विश्वास पर आधारित थी कि हिंदू और मुसलमान दो अलग-अलग राष्ट्र हैं। उनका मानना था कि पाकिस्तान को स्वीकार करने से भारत में गृह युद्ध को रोका जा सकता है। हालाँकि, उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि एक स्वतंत्र पाकिस्तान जरूरी नहीं कि एक लोकतांत्रिक राज्य हो और वह अधिनायकवाद में बदल सकता है।
मुस्लिम राजनीतिक व्यवहार पर डॉ अंबेडकर की राय
अंबेडकर ने देखा कि हिंदुओं की तुलना में मुसलमानों की एक अलग राजनीतिक रणनीति थी। उनका मानना था कि मुस्लिम राजनीति धार्मिक पहचान के इर्द-गिर्द केंद्रित थी, जिसने उन्हें अपनी मांगों को मुखर करने में अधिक आक्रामक बना दिया। उन्होंने लिखा:
“जहाँ भी मुस्लिम कानून और आम कानून के बीच संघर्ष होता है, वहां मुस्लिम कानून ही प्रबल होना चाहिए।”
उन्होंने यह भी बताया कि मुसलमान एक समूह के रूप में मतदान करते हैं, जो अक्सर राष्ट्रीय हित के बजाय धार्मिक विचारों से प्रेरित होता है। उन्होंने तर्क दिया कि इससे भारत जैसे बहु-धार्मिक देश में लोकतांत्रिक शासन मुश्किल हो गया।
मुसलमानों के हिंदू तुष्टीकरण पर राय
अंबेडकर उन हिंदू नेताओं की आलोचना करते थे जो मुसलमानों को खुश करने की कोशिश करते थे, उनका मानना था कि इस तरह के तुष्टीकरण से वास्तविक एकता नहीं आएगी। उन्होंने गांधी और कांग्रेस पर दलितों और अन्य हाशिए के समूहों के सामने आने वाले मुद्दों की अनदेखी करते हुए मुसलमानों को अत्यधिक रियायतें देने का आरोप लगाया।
उनका मानना था कि मुसलमानों को हमेशा पीड़ित के रूप में पेश करने का कांग्रेस का प्रयास दोषपूर्ण था, क्योंकि इसने उन ऐतिहासिक उदाहरणों को नजरअंदाज कर दिया जहां मुसलमान आक्रामक रहे हैं।
.. इसलिए इस्लाम से बनाई दूरी
डॉ. आंबेडकर ने इस्लाम का काफी गहराई से अध्ययन किया था और उसमें कई खामियों और कट्टरपन के कारण उन्होंने इस्लाम स्वीकार न कर बौद्ध धर्म स्वीकार किया था। आज के समय में भी मुसलमानों के प्रति उनकी राय सही साबित होती है। जहां-जहां उनकी आबादी अधिक है, वहां दूसरे धर्म के लोगों का जीवन नरक बना हुआ है। भारत में जहां उनकी संख्या अधिक है, वहां लोगों का जीना दूभर बना हुआ है। उनके निशाने पर सवर्ण कम, दलित, आदिवासी और पिछड़े ज्यादा होते हैं।