देश कोरोना के खिलाफ जन आंदोलन छेड़े हुए है। इस बीच गर्मी, बारिश झेलने के बाद मौसम सर्द है तो सियासत गर्म हो चली है। गली से दिल्ली तक कहीं अन्नदाता सड़कों पर हैं तो कहीं लाल सलाम बाबू उग्र हो रहे हैं। बात यहीं नहीं थमती दिल्ली में घिरनेवाली बीजेपी सरकार महाराष्ट्र में बिजली बिल माफी के मुद्दे पर आंदोलित है। इस आंदोलन में दूसरा दल मनसे भी है जो महामारी एक्ट के निर्बंधों के बावजूद जनजीवन को सामान्य रखनेवाले मुद्दे को लेकर मैदान में है। मराठा के सियासी शॉक के बीच मराठा आंदोलन भी शुरू है। मराठा छात्रों के मुद्दे को लेकर समाज भी सड़क पर उतर चुका है।
अब बात दिल्ली की करते हैं …पंजाब और हरियाणा से किसान अपने ट्रैक्टरों को लेकर दिल्ली की ओर चल पड़े हैं। उन्हें रोकने के लिए दिल्ली की सीमाओं को सील कर दिया गया है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है कि कोरोना से दिल्ली दहल गई है। प्रतिदिन कोरोना के आंकड़े बढ़ रहे हैं। इस लहर में भीड़ जुटना पूरी दिल्ली के लिए खतरा है। लेकिन किसान तो अन्नदाता हैं। उन्हें केंद्र सरकार द्वारा गठित नए कृषि कानून से फसलों के समर्थन मूल्य के छिनने का डर है। उन्हें लग रहा है कि उनकी मंडियां अब नए कानून से छिन जाएंगी। इसके लिए वे दिल्ली के दिल में तंबू गाड़कर अनिश्चित काल के लिए बैठना चाहते हैं। लेकिन दिल्ली का अपना दर्द ही गंभीर स्थिति में है।
इस बीच ममता बनर्जी का राज्य भी आंदोलन झेल रहा है। वहां लाल सलाम वाली पार्टियां भारत बंद की तख्तियां लेकर सड़कों पर हैं। जगह-जगह ट्रेन रोकी जा रही हैं, सड़क ब्लॉक किये जा रही हैं। इस आंदोलन में दस केंद्रीय श्रमिक संगठन और राज्य के श्रमिक संगठनों के लोग सम्मिलित हो रहे हैं। इनकी भी मांग 200 दिनों का रोजगार, निजिककरण का विरोध आदि है।
आंदोलन की तीसरी तस्वीर महाराष्ट्र से है जहां राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के कार्यकर्ता सड़कों पर हैं। मनसे की मांग है कि लॉकडाउन काल के बिजली बिलों को माफ किया जाए। इसी मुद्दे पर बीजेपी सड़कों पर उतर चुकी है। मनसे को आंदोलन के लिए इजाजत नहीं मिल पाई है लेकिन इसके बावजूद कार्यकर्ता इकट्ठा होकर आंदोलन वाली जगह के लिए निकल पड़े हैं।
महाराष्ट्र में एक अन्य आंदोलन भी हो रहा है… ये आंदोलन है मराठा समाज का। जहां मराठा समाज की मांग है कि 11वीं की प्रवेश प्रक्रिया को आरक्षण पर सर्वोच्च नायायालय का निर्णय आने तक रोका जाए।
देश में हो रहे आंदोलनों के मुद्दे जनसामान्य के हैं लेकिन इनके समय को लेकर बड़ी दिक्कत है। कोरोना कण-कण में है और आंदोलित भीड़ भावनाओं में सीमाएं तोड़ती चल रही है… तो सवाल है कि मुद्दे पेट के हैं, पैसे के हैं तो स्वास्थ्य भी तो अपना ही है… एक-एक जिंदगी देश की है… और इन जिंदगियों से ही देश है….
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