संविधान के साथ तुष्टीकरण के नाम छेड़छाड़ – पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ

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तिहत्तर वर्ष पहले 26 नवंबर, 1949 को हमने अपने संविधान को अधिनियमित तथा अंगीकृत किया था। तब से हर साल 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाया है। किसी राष्ट्र के जीवनकाल में यह बहुत बड़ा कालखंड नहीं माना जाता, किन्तु इन वर्षों में उस राष्ट्र के भविष्य की पीठिका तैयार हो जाती है। संविधिक विकास के लिहाज से शुरुआती कुछ दशक अपेक्षाकृत अधिक महत्वपूर्ण होते हैं, क्योंकि इनमें कानूनी व्यवस्था का नया ढांचा तैयार होता है। उसे आत्मसात करने की परम्परा विकसित की जाती है तथा कानून की न्यायिक व्याख्या की दिशा तय होती है। संविधान के माध्यम से हमने अपने राष्ट्र को प्रभुतासम्पन्न, लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया तथा समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय देने का संकल्प लिया। हमने ऐसे समाज की परिकल्पना की, जिसमें विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म तथा उपासना की स्वतंत्रता के साथ ही सभी नागरिकों के लिए प्रतिष्ठा और अवसर की समानता हो। संविधान आजादी और खुशहाली के वादे का दस्तावेज होता है।

इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहते हुए साल 1976 में 42 वें संविधान संशोधन के जरिये प्रस्तावना में ये दो शब्द जोड़े गए थे। इन ‘सेक्युलरिज्म और सोशलिज्म’ शब्दों को लेकर लंबे काल से विवाद चल रहा है।

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